हर तरीका मेरा न्यारा है, ज़माने वालों ,
आज कल वक़्त हमारा है, ज़माने वालों !
जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
तुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों !
दो घड़ी चैन से तुमने जिसे जीने न दिया,
किसी की आँख का तारा है, ज़माने वालों !
बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों !
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
आज 'आनंद' की दीवानगी से जलते हो ,
तुमने ही उसको बिगाड़ा है, ज़माने वालों !
आनंद द्विवेदी १६-०५-२०११