मैं आज जगत का स्वामी हूँ
तुम बाहुपाश में, मेरे हो,
सहसा इस प्रकृति प्रियतमा ने
ज्यों सुन्दर चित्र उकेरें हों ,
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
क्षण लोगी या जीवन लोगी
बोलो कुछ तो बोलो सजनी
दिल लोगी या धड़कन लोगी
जो स्वप्नों से हो प्यार तुम्हें
तो नभ ले लो, उडगन ले लो
हो स्वप्नों का विस्तार प्रिये
तुम मन ले लो, मोहन ले लो
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
दृग लोगी या चितवन लोगी
बोलो कुछ तो बोलो सजनी
दिल लोगी या धड़कन लोगी
तुम शुभ्र चांदनी, चंदा की
खुशबू जैसे, चन्दन वन की
तुम दशों दिशाओं की मलिका
इच्छित हो मेरे जीवन की
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
मधु लोगी, या मधुवन लोगी
बोलो कुछ तो बोलो सजनी
दिल लोगी या धड़कन लोगी ||
-आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११