मंगलवार, 27 जनवरी 2015

जरिबो पावक मांहि

प्रेमी कहता है
एक आस टूटी
ज्ञानी कहता है
एक बंधन टूटा
ईश्वर खड़ा हो गया है आकर ठीक उस जगह
कल तक तुम जहाँ खड़ी थी
चीड़ के पेड़ की तरह,

प्रेमी कहता है
खो गया सब कुछ
ईश्वर केवल रिक्त स्थान की पूर्ति का भ्रम है
ज्ञानी कहता है
मिल गया है वह सबकुछ
जिसकी पूर्ति भ्रमों से रिक्त होकर ही होती है

मेरे भीतर से एक नन्हा शिशु निकलकर
पकड़ लेता है ऊँगली
तेरे उसी प्रेमी की
जिसने हमेशा तुझे ही चुना
ईश्वर के मुकाबले

मैं कोई बच्चा तो हूँ नहीं
इसीलिये बढ़ता हूँ
ईश्वर की तरफ
आखिर मुझे और भी बहुत कुछ देखना है
जीवन से लेकर मृत्यु तक

ईश्वर बहुत अच्छा व्यवस्थापक है
व्यवस्था में ही सबका हित है
जान है तो जहान है
फिर भले ही ये जान और ये जहान
दोनों दो कौड़ी के हों

कमजोर लोग
नहीं कर सकते ...कभी
प्रेम
प्रेम आक्सीजन की जगह भरता है साँसों में
साहस
और कार्बन डाई आक्साइड की जगह
बाहर छोड़ता है
विद्रोह !

अंततः
ज्ञानी सुख को प्राप्त होता है
और प्रेमी
दाह  को !

- आनंद 

रविवार, 25 जनवरी 2015

इतना भी नहीं टूट गया हूँ ...

इतना भी नहीं टूट गया हूँ, यक़ीन रख
जब दे रहा है दर्द तो उसमें कमी न रख

मैं जिस्म के कर्ज़े उतारता चलूँ, ठहर
बेसब्र है तो रूह की गिरवी ज़मीन रख

कर दे मेरे नसीब में गुमनाम रास्ते
अपने सफ़र के वास्ते, राहें हसीन रख

अब वक़्त जा रहा है  दुआएँ क़ुबूल कर
कुछ देर मुल्तवी तू मेरी छानबीन रख

'आनंद' कहीं राह में ठोकर भी खायेगा
जब भी गिरेगा उठके चलेगा यक़ीन रख

- आनंद


बुधवार, 14 जनवरी 2015

इस दुनिया को रहने लायक कर मौला

काँप रहे हैं बच्चे थर थर थर मौला
इस दुनिया को रहने लायक कर मौला

जो ताक़त के पलड़े में कुछ हलके हैं
उनको भी करने दे गुज़र-बसर मौला

पहले मज़हब में बाँटा इंसानों को
देख बैठकर अब खूनी मंज़र मौला

आधी आबादी दुश्मन है आधी की
थोड़ा इन मर्दों को काबू कर मौला

ना तुझसे डरते न तेरी दुनिया से
तू खुद ही अपने बंदों से डर मौला

ताकत की सत्ता का नियम बना जबसे
उस दिन को मनहूस मुकर्रर कर मौला

ऐसा ही इंसान रचा था क्या तूने  ?
ऊपर मीठा, अंदर भरा ज़हर मौला

जब जीवन ठगविद्या हो 'आनंद' नहीं
मुझको फिर छोटे बच्चे सा कर मौला

- आनंद 

रविवार, 11 जनवरी 2015

कुछ उनसे कुछ हमसे गिरकर चूर हुए

कुछ उनसे कुछ हमसे गिरकर चूर हुए
धीरे धीरे ख्व़ाब सभी काफ़ूर हुए

कहते हैं, कुछ रिश्ते ऊपर बनते हैं
नीचे आकर वो भी नामंजूर हुए

अंदर गहराई में ही कुछ हों तो हों
बाहर के तो रंग सभी बे-नूर हुए

कुछ उनका ग़म और करम कुछ यारों के
आहिस्ता- आहिस्ता हम मशहूर हुए

जीवन 'पाना' नहीं, निभाना है बंधू
कितना पाकर भी तो सबसे दूर हुए

वक़्त रहे 'आनंद' समझ ले भाई ये
जिनसे थीं उम्मीदें वो मजबूर हुए

हम  तो जैसे हैं बस उठकर चल देंगे
अब क्या अक़बर हुए और मगरूर हुए

- आनंद