खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये |
मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये |
जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये |
वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये |
मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये !
मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |
उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने आये |
यारों 'आनंद' से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये ||
-आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११