बावरी हुई है मातु प्रेम प्रेम बोलि रही
तीन लोक डोलि डोलि खुद को थकायो है
गायो नाचि नाचि कै हिये की पीर बार बार
प्रेम पंथ मुझ से कपूत को दिखायो है
भसम रमाये एकु जोगिया दिखाय गयो
कछु न सुहाय हाय जग ही भुलायो है
धाय धाय चढ़त अटारी महतारी मोरि
छोड़ि लोक लाज सभी काज बिसरायो है
पायो है महेश अंश दंश सभी दूरि भये
धूरि करि चित्त के विकार दिखलायो है
भूरि भूरि करत प्रसंशा जगवाले तासु
मातु ने आनंद को आनंद से मिलायो है
- आनंद
तीन लोक डोलि डोलि खुद को थकायो है
गायो नाचि नाचि कै हिये की पीर बार बार
प्रेम पंथ मुझ से कपूत को दिखायो है
भसम रमाये एकु जोगिया दिखाय गयो
कछु न सुहाय हाय जग ही भुलायो है
धाय धाय चढ़त अटारी महतारी मोरि
छोड़ि लोक लाज सभी काज बिसरायो है
पायो है महेश अंश दंश सभी दूरि भये
धूरि करि चित्त के विकार दिखलायो है
भूरि भूरि करत प्रसंशा जगवाले तासु
मातु ने आनंद को आनंद से मिलायो है
- आनंद