ख़ुशी से तर-ब-तर हसीन,'एक' पल था वो,
मगर वो आज नहीं है ज़नाब कल था वो!
राख़ के ढेर में, बैठा तलासता हूँ जिसे,
रात को जल गया, नाचीज़ का महल था वो!
वक़्त भी पंख लगा के उड़ा, तो फिर न मिला,
आपका 'वक़्त' था, मेरे लिए ग़ज़ल था वो!
अपने घर से ही जो निकला, थके कदम लेकर,
लोग कहते हैं, गली की चहल पहल था वो !
लोग पहचानने से भी , मुकर गए जिसको,
आपके प्यार की, बिगड़ी हुई शकल था वो!
सर झुकाए हुए , जिल्लत से, पी गया यारों,
घूंट पर घूंट, ज़माने का हलाहल था वो !!
आपकी झील सी आँखों में, बसा करता था,
किसी ने तोड़ दिया है, खिला कमल था वो !
बहुत गरीब था 'मनहूस', मर गया होगा,
नाम 'आनंद' मगर , दर्द की फसल था वो!!
२० फ़रवरी १९९३ ..!