दौर-ए-गर्दिश में मुझे राह दिखाने के लिए
शुक्रिया आपका हर साथ निभाने के लिए
जिंदगी लौट के आया हूँ अंजुमन में तेरे
अब किसी गैर के कूचे में न जाने के लिए
बेरहम वक़्त से उम्मीद भला क्या करना
खुद ही जलना है यहाँ शम्मा जलाने के लिए
कसमे वादे, हसीन ख्वाब और रंज-ओ-ग़म
छोड़ आया हूँ मैं, ये काम जमाने के लिए
एक बेनाम सा अहसास और एक कसक
इतना काफी है एक उम्र बिताने के लिए
थोड़े यादों के फूल थे, जो बचा रक्खे थे
ये भी ले जाता हूँ मंदिर में चढ़ाने के लिये
साथ 'आनंद' का अब कौन भला चाहेगा
हाथ में कुछ नहीं दुनिया को दिखाने के लिए
-आनंद द्विवेदी २७/११/२०११