गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

दंगे

अज़ब जद्दोजहद में जी रहे हैं
फटे हैं जिस्म, झण्डे सी रहे हैं

हमारा कान कौव्वा ले गया है
हमारे दोस्त दुःख में जी रहे हैं

अचानक देशप्रेमी बढ़ गए हैं
कुएँ में भाँग है सब पी रहे हैं

ये साज़िश और नफ़रत का जहर है
जिसे अमृत समझकर पी रहे हैं

हमारी चेतना शायद मरी है
हज़ारो साल कठपुतली रहे हैं

हमें क्यों दर्द हो इन मामलों से
कि हम विज्ञापनों में जी रहे हैं

ये फर्ज़ी मीडिया का दौर है जी
गलत को देखकर लब सी रहे हैं

अकेले हैं तो है 'आनंद' वरना
हुए जब भीड़ नरभक्षी रहे हैं ।

© आनंद

सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

डर लगता है

'टुकड़े-टुकड़े' नारों वालों, मॉबलिचिंग के पैरोकारों
मुझको दोनों के नारों से डर लगता डर लगता है

जिसको मौका मिला उसी ने जमकर अपना नाम कमाया
झूठै ओढ़ा झूठ बिछाया, झूठै खर्चा झूठ बचाया
अब ऐसे ठेकेदारों से डर लगता है डर लगता है

मुझको तेरा भय दिखलाकर तुमको मेरा भय दिखलाया
थी जो मेड़, बन गयी खाई फिर पक्की दीवार बनाया
हमे तुम्हारे तुम्हें हमारे व्यवहारों से डर लगता है

कपटसंधियाँ करने वाले जनगणमन का गान कर रहे
षडयंत्रो की रचना वाले संविधान का नाम जप रहे
मुझको इन रचनाकारों से डर लगता है डर लगता है !!

© आनंद

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

उम्मीद

काटोगे तो कट जायेगी
ये बदरी भी छँट जायेगी

बच्चे आपस में झगड़े तो
माँ की छाती फट जायेगी

नफ़रत की चट्टान अगर है
जोर लगाओ हट जायेगी

आओ मन का मैल मिटाएँ
आधी बात निपट जायेगी

दोनों के दिल साफ रहे तो
यह खाई भी पट जाएगी

अच्छा सोचो अच्छा बोलो
सब कड़वाहट मिट जायेगी

बाँटो कुछ 'आनंद', ज़िंदगी
आख़िर तो मरघट जायेगी।

© आनंद