गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

होता जा रहा हूँ...

धुन-ए-रुबाब होता जा रहा हूँ
बड़ा नायाब होता जा रहा हूँ

धड़कता हूँ किसी की धडकनों में
किसी का ख़्वाब होता जा रहा हूँ

फितरतन हूँ नहीं बेसब्र फिर भी
इधर बेताब होता जा रहा हूँ

तुम्हारे इश्क़ ने जब से छुआ है
मैं चश्म-ए-आब होता जा रहा हूँ

हुज़ूर-ए-अंजुमन में आ गया हूँ
पर-ए-सुर्खाब होता जा रहा हूँ

न यूँ हसरत से ताको आसमाँ को
मैं माहेताब होता जा रहा हूँ

वो इतनी नाज़ुकी से मिल रहे हैं
मैं खुद आदाब होता जा रहा हूँ

तिरे 'आनंद' की इक बूँद भर हूँ
जो अब सैलाब होता जा रहा हूँ

© आनंद

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 06 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. धडकता हूँ किसी की धडकनों में -
    किसी का खाब होता जा रहा हूँ ------ क्या खूब लिखा आपने !!!! बाकी के सभी शेर भी बहुत लाजवाब है | सादर शुभ कामना |

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति । सादर ।

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