इत्र बनेंगे उड़ जाएंगे इक न इक दिन
ऐसे रुख़सत हो जाएंगे इक न इक दिन
लिए पोटली खट्टी मीठी यादों की
उनकी गलियों में जाएंगे इक न इक दिन
पत्थर, मोम, फूल या काँटे, सब उनके
ऐसे मन को बहलायेंगे इक न इक दिन
यही सोचकर सपने देख रहा था मैं
शायद वो इनमें आएंगे इक न इक दिन
हमने कोशिश की थी उन सा होने की
वो किस्सा भी बतलायेंगे इक न इक दिन
उन्हें पता है, हमसे और न कुछ होगा
रो धो कर चुप हो जाएंगे इक न इक दिन
मैं तो ख़ैर बज़्म से उनकी उठ आया
अलबत्ता वह पछताएंगे इक न इक दिन
मेले का 'आनंद' झमेले का जीवन
मेले में ही खो जाएंगे इक न इक दिन
@ आनंद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 28 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमैं तो ख़ैर बज़्म से उनकी उठ आया
अलबत्ता वह पछताएंगे इक न इक दिन
मेले का 'आनंद' झमेले का जीवन
मेले में ही खो जाएंगे इक न इक दिन
सच लिखा कि मेले में ही खो जायेंगे सब झमेले जीवन के।। वेहतरीन रचना।
वाह ! हर पंक्ति एक कहानी सी कहती हुई लगती है, सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंहमने कोशिश की थी उन सा होने की
जवाब देंहटाएंवो किस्सा भी बतलायेंगे इक न इक दिन
मेले का 'आनंद' झमेले का जीवन
मेले में ही खो जाएंगे इक न इक दिन
कम शब्दो मे बहुत कुछ कह जाते है आप आदरणीय, लाजवाब!
"इत्र उडाता आता था इक सौदागर,
सोचा मन को बहलायेंगे इक न इक दिन,
भरी ब़ज्म हो गई खाली आपके उठ आने से,
शायद वो कि किस्सा भी सुन पाएंगे इक न इक दिन,"🙏
क्या कहूं मैं तो इस लायक भी नहीं खुद को मानता कि आपकी कविताओं पर कुछ लिख सकूं। जिसका व्यक्तित्व कृतित्व ऐसा हो उस मेरे जैसे मंद बुद्धि क्या लिखें। बहुत उम्दा लेखन है तो उसका रचनाकार उससे भी उम्दा
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