शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

आज का सपना

न मैं तुम्हारे लायक हूँ न प्रेम के
कृपालु प्रभु की कृपा ....  कि 
मुझ जैसे मूढ़ को 
जगत की  इस सबसे निराली खुशबू से 
सींच दिया , कर दिया सराबोर 
दुआओं लिए उठी मेरी हथेलियों में 
डाल दिया दुनिया का सबसे अनोखा फूल 
अब न लायक होना कोई मायने रखता है 
ना ही नालायक होना 
योग्य अयोग्य की सीमा के बाद 
मैंने पाया है तुमको ....  बार बार खोकर   
हर बार 
और अधिक तपकर 
और अधिक भरोसे के साथ … 

एक ओर मन है अनंत .... निःसीम 
दूजी ओर शरीर है 
अपनी व्याधियों उपाधियों में उलझा हुआ 
छकाया अपनी सामर्थ्य भर दोनों ने 
बचाया हर बार.… 
कभी तुमने ....  कभी तुम्हारे होने के अहसास ने 

एक दिन शरीर जल गया 
मन मर गया 
बची सिर्फ रूह 
जो घुल गयी तुम्हारी रूह में 
तुम्हारी रूह ने भी तड़पकर मिल जाने दिया 
खुद को 
मेरी रूह में

इस तरह हम मिले  
और पूरा हुआ
हमारा एक जन्म ... !

- आनंद 

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