गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

"बुरा जो देखन मैं चला "




कल सबको रावण दिखायी दे रहा था
पुतले वाला नहीं
'असली' वाला
मैं दंग था कि कोई एक तो मिले जो भ्रम में हो
मगर नहीं
रावण को लेकर आश्चर्यजनक रूप से सबकी जानकारी असंदिग्ध थी
वो यहीं है जीवित और हमारे बीच में है
मेरे सिवा हम सब में है |

गज़ब के नौटंकीबाज़ हैं हम ...सच में
धरती पर और कोई प्रजाति
चरित्रवान होने के मामले में
हमारा मुकाबला नहीं कर सकती
कुछ को आज सुबह तक भी दिख रहा था रावण
जो छूट गए हैं उनके लिये
आज शाम या रात तक अंतिम समय सीमा है
फटाफट आसपास नज़र दौड़ाइये
दो चार तो ढूंढ ही लेंगे
अब चूके
तो ऐसे दुर्लभ आत्मज्ञान के लिये
अगली विजयदशमी का इंतज़ार कैसे हो पायेगा
एक पंक्ति याद आती है
"पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जाति"  
 एक साल बहुत होते हैं भाई
'कालि करे सो आज कर'

________________ समर्पित : रावण जी को इस नोट के साथ कि आप मुझसे लाख गुने अच्छे थे | आपके जीवन में भी कुछ सिद्धांत तो थे कम से कम |

3 टिप्‍पणियां:

  1. तो रावण आपसे लाख गुना अच्छे????
    हाँ शायद हम सबसे.....(ईमानदारी से कहें तो..)
    बढ़िया.......

    अनु

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  2. अद्भुत.....

    "आपके जीवन में भी कुछ सिद्धांत तो थे कम से कम..."
    रावण जी के लिए सद्भावना....!!!
    जो सही भी है...
    और हम......????

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