जहाँ पे जख़्म है मरहम वहीं लगाये मुझे
जिसे ये इल्म हो अपना वही बताये मुझे
तमाम उम्र हमारी जलन से वाक़िफ़ हो
उसी को हक़ मिले कि घाट पर जलाये मुझे
हर एक जख़्म के बदले यहाँ दुआएं हैं
कोई भी जख़्म नया दे के आजमाए मुझे
अभी भी इश्क़ की बातों पे यकीं है मुझको
वो कहानी कोई तफ़्सील से सुनाये मुझे
मुझे तो डूबने वाले भी तैरते ही मिले
है इल्तज़ा कि कोई डूबना सिखाये मुझे
कभी बजा न सका 'नाम' के नगाड़े को
जिसे भुलाना है कल आज ही भुलाये मुझे
जहाँ मैं नेकियों को डालता था वो दरिया
किसी ने पाट दिया है बिना बताये मुझे
बना बना के मिटाता रहा जो तस्वीरें
अगर वो खेल चुका हो तो अब मिटाये मुझे
किसी के नाम से 'आनंद' नहीं हो जाता
जिंदगी ख़ाब दिखाने से बाज आये मुझे।
© आनंद
जिसे ये इल्म हो अपना वही बताये मुझे
तमाम उम्र हमारी जलन से वाक़िफ़ हो
उसी को हक़ मिले कि घाट पर जलाये मुझे
हर एक जख़्म के बदले यहाँ दुआएं हैं
कोई भी जख़्म नया दे के आजमाए मुझे
अभी भी इश्क़ की बातों पे यकीं है मुझको
वो कहानी कोई तफ़्सील से सुनाये मुझे
मुझे तो डूबने वाले भी तैरते ही मिले
है इल्तज़ा कि कोई डूबना सिखाये मुझे
कभी बजा न सका 'नाम' के नगाड़े को
जिसे भुलाना है कल आज ही भुलाये मुझे
जहाँ मैं नेकियों को डालता था वो दरिया
किसी ने पाट दिया है बिना बताये मुझे
बना बना के मिटाता रहा जो तस्वीरें
अगर वो खेल चुका हो तो अब मिटाये मुझे
किसी के नाम से 'आनंद' नहीं हो जाता
जिंदगी ख़ाब दिखाने से बाज आये मुझे।
© आनंद
उम्दा अशआर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंजहाँ मैं नेकियों को डालता था वो दरिया
किसी ने पाट दिया है बिना बताये मुझे
वाह
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं