गुरुवार, 27 सितंबर 2012

टपकती छत से ...

पानी की  एक बूँद
छत से चली
मुझे देखते हुए
मैं भी देख रहा था उसे ही
आकर आँख के नीचे गिरी
टप्प !
थोड़ी देर बाद एक और चली
मगर मैंने
इस बार लगा दी थी थाली
ठम्म
इस बार वो बंट गयी
सैकड़ों हिस्सों में
मैंने देखा
एक को अनेक होते हुए

ऐसे ही
तेरी याद की एक छोटी सी बूँद
जब भी टकराती है
मेरे पत्थर हो चुके जेहन से
न जाने कितने रंग रूप  और हिस्से
हो जाते हैं
फिर यादों के |

- आनंद