शनिवार, 29 अप्रैल 2017

एक सिपाही की ग़ज़ल

दुनिया की सरकारों मुझको
चलो दाँव पर डारो मुझको

मैं फौजी अनुशासन मे हूँ
आप जुए में हारो मुझको

मैं जवान हूँ , मैं किसान हूँ
मारो  मारो,  मारो मुझको

जब भी हक़ की बात करूँ तो
चौखट से दुत्कारो मुझको

उल्टे सीधे प्रश्न करुँ तो
चलो जेल में डारो मुझको

कोई काम बनाना हो जब
धीरे से  पुचकारो मुझको

मेरे हिस्से फूल कहाँ हैं
काँटों तुम्ही सँवारो मुझको

धन्नासेठों की रक्षा में
नाहक आप उतारो मुझको

घर की जंग लड़ी न जाये
सरहद पर ललकारो मुझको

- आनंद