रविवार, 19 मई 2013

जब से मैं किसी राह का पत्थर नहीं रहा

जब से मैं किसी राह का पत्थर नहीं रहा
मुझको भी ठोकरों का कोई डर नहीं रहा

घर का भी कोई वास्ता दिल से जरूर था
देखो न, मेरा घर भी मेरा घर नहीं रहा

दैरो-हरम बनाये, जिसने महल बनाये
उनके सरों पे ठीक से छप्पर नहीं रहा

इंसान ने  इंसान का ये  हाल किया  है
शैतान से ऐसा तो कभी डर नहीं रहा

हँस हँस के जी रहा हो या रो रो के जिए वो
'आनंद' मगर तय है, अभी मर नहीं रहा

 - आनंद