मंगलवार, 15 मार्च 2011

अकेलापन !






कितना सुखद है  
कुछ नहीं सुनना
बहरापन ....
सन्नाटा 
नीरवता 
शून्य!
कोलाहल से दूर भाग जाना 
कितना अच्छा होता है न ?
सुना ही नहीं मैंने ...
मौत घट रही थी कहीं गहरे अन्दर 
या फिर शांति थी यह
मेले में समाधि थी
या फिर
मेरा  निपट सूनापन  !!
जितने बहाने थे मेरे पास
मैंने सब को आजमा लिया
क्या कमी है ..
सब तो है मेरे पास
हर रिश्ता
हर 'सुख'
जरूरत की हर सामान
जीवन आराम से गुजारने लायक
फिर क्यूँ
चिड़ियों की चहचहाहट नहीं सुनाई देती
पास से निकलती हुई हवा
क्यूँ दूसरे देश की लगती है
सोंच में हूँ की
ऐसा क्यूँ हुआ है
इच्छाएं तो है
उम्मीद भी है
चाहत भी है ...
फिर ये सूनापन क्यूँ
अकेलापन क्यूँ भाता है
कहीं से कोई उत्तर नहीं
शायद कुछ प्रश्न...
हमेशा ही अनुत्तरित रहते हैं ..
आपको भी  ..
शांति चाहिए... तो बहरे हो जाओ
जीना है.... तो गूंगे हो जाओ ...
चाहते हो कोई हाथ पकड ले
सहारे के लिए
तो
अंधे हो जाओ
मेरी तरह
क्योंकि दुनिया ...
गिरते को तो थाम लेती है
मगर समर्थ को गिराने का
कोई अवसर नहीं छोड़ती !

 ---आनंद द्विवेदी १५/०३/२०११