शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बेवजह आँख भर गयी फिर से






जुस्तजू सी उभर गयी फिर से
शाम भी कुछ निखर गयी फिर से

तेरा  पैगाम  दे  गया  कासिद
जैसे धड़कन ठहर गयी फिर से

तेरी बातों की बात ही क्या है
कोई खुशबू बिखर गयी फिर से

जिंदगी! होश में भी है,  या कहीं
मयकदे  से गुज़र गयी फिर से ?

रात इतनी वफ़ा मिली मुझको
जैसे तैसे सहर हुयी फिर से

वो तो बेमौत ही मरा होगा
जिस पे तेरी नज़र गयी फिर से

तेरा दीदार मिले तो समझूं
कैसे किस्मत संवर गयी फिर से

कहके 'आनंद' पुकारा किसने
बेवजह आँख भर गयी फिर से

-आनंद द्विवेदी २२-२६ /०१/२०१२