शनिवार, 31 दिसंबर 2011

जिंदगी की दास्ताँ, बस दास्तान-ए-ग़म नही



जिंदगी की दास्ताँ, बस दास्तान-ए-ग़म नही
इम्तहाँ भी कम नही, तो हौसले भी कम नही

करने वाले मेरे सपनों की तिजारत कर गये
हम सरे-बाज़ार थे पर हुआ कुछ मालुम नही

कुछ नकाबें नोंच डालीं वक़्त ने,  अच्छा हुआ
जो भी है अब सामने, गफ़लत तो कम से कम नही 

अय ज़माने के खुदाओं  अपना रस्ता नापिए
अब किसी भगवान के रहमो-करम पर हम नही

अब जहाँ जाना  है लेकर वक़्त मुझको जाएगा
मौत महबूबा है, लेकिन ख़ुदकुशी लाज़िम नही

रंज मुझको ये नहीं, कि क्यों गया तू छोड़कर
रंज ये है,  क्यों तेरे जाने का रंज-ओ-गम नहीं

अपने अब तक के सफ़र में खुद हुआ मालूम ये
लाख अच्छे हों,  मगर ऐतबार लायक हम नही

हिज्र की बातें करे या, वस्ल का चर्चा करे
आजकल 'आनंद' की बातों में वैसा दम नही

-आनंद द्विवेदी ३१/१२/२०११