रविवार, 11 जनवरी 2015

कुछ उनसे कुछ हमसे गिरकर चूर हुए

कुछ उनसे कुछ हमसे गिरकर चूर हुए
धीरे धीरे ख्व़ाब सभी काफ़ूर हुए

कहते हैं, कुछ रिश्ते ऊपर बनते हैं
नीचे आकर वो भी नामंजूर हुए

अंदर गहराई में ही कुछ हों तो हों
बाहर के तो रंग सभी बे-नूर हुए

कुछ उनका ग़म और करम कुछ यारों के
आहिस्ता- आहिस्ता हम मशहूर हुए

जीवन 'पाना' नहीं, निभाना है बंधू
कितना पाकर भी तो सबसे दूर हुए

वक़्त रहे 'आनंद' समझ ले भाई ये
जिनसे थीं उम्मीदें वो मजबूर हुए

हम  तो जैसे हैं बस उठकर चल देंगे
अब क्या अक़बर हुए और मगरूर हुए

- आनंद