शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

आंसुओं की झील में ही

आँसुओं की झील में ही प्यास को जीते चलें
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें

जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें

हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में  प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें

काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें

हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें

 - आनंद