बुधवार, 25 जुलाई 2012

बदलाव चाहते हैं तो बदलाव कीजिये




काबा भी  खूब जाइए  काशी भी जाइए
पहले दिलों में प्यार के दीपक जलाइए

आँखों को नम न कीजिये यूँ बात बात पर 

दुनिया के ग़म भी देखिये  कुछ मुस्कराइए

फौरन से पेश्तर सुकून दिल को मिलेगा
बच्चों के साथ खेलिए उनको हंसाइये

महफ़िल में दिल का दर्द बयाँ कर चुकें हों तो
फ़ाका-क़शों  की बात भी थोड़ी चलाइये

सत्संग से मिलाद से  कुछ वक़्त बचे  तो
दो पल की किसी गरीब का बच्चा पढ़ाइये

बदलाव  चाहते  हैं  तो  बदलाव  कीजिये
नाहक न यहाँ मुल्क की कमियां गिनाइये

'आनंद' वहीं है  जहाँ दुनिया में  दर्द है
अपने को इस तरह से सभी का बनाइये

- आनंद
२५-०७-२०१२


शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

नश्तर (कुछ क्षणिकाएँ )



(एक) 

आज उसने 
मुझे एक कविता भेजी 
एक याद 
और साथ में 
थोड़ी सी ख़ामोशी 
उसका कहना है 
कि वो 
मुझे प्यार नहीं करती !

(दो)

जान लेने से पहले 
तुमने 
हर अहतियात बरता
कि 
मुझे कम से कम दर्द हो
और 
अंतिम वार से पहले तो तुमने 
प्यार भी किया 
शुक्रिया ! 

(तीन)


काश ..
एक वादा ही किया होता हमने 
काश ..
कुछ तो होता हमारे दरम्यान !!
टूटने के लिए भी 
कुछ तो होता 
सदायें 
टूटती कहाँ है 
वो तो 
बस या होती हैं
या
नहीं होती
एकदम मेरे वजूद कि तरह !!


(चार) 

यादें 
इंतज़ार है कब पाबंदी लगाओगे 
इन यादों पर |
तुम 
सब कुछ कर सकते हो 
बस मेरी सांसें ही बगावत कर जाती हैं 
जरा ठहर जाएँ 
तो इनका क्या बिगड़ जाएगा !!

(पाँच)

अब और कितना दूर जाओगे 
मेरी आवाज़ की भी एक सीमा है 
पीछे मुड़कर देखो तो 
मेरे लिए नहीं 
तुम्हारी अकड़ी गरदन को आराम मिलेगा !

(छः)

जब आप सप्तऋषियों के बगल में होंगे 
और ध्रुव तारे की तरह 
चमक रहें होंगे 
उस अँधेरी रात में 
यहाँ धरती से मैं ऊँगली उठाकर 
सबको बताऊंगा 
देखो.... वो रहे तुम !

(सात)
तुम्हारे बाद 

अब कोई ठहरता नहीं मेरे पास 
मेरे शरीर से 
तुम्हारी आत्मा की 
गंध आती है |

(आठ) 

अपनी दुनिया में मैं अकेला
अपने आसमान में चाँद
वो निहायत खुबसूरत
और मैं ...
निहायत किस्मत वाला
आज पूनम है
ज्वार केवल समन्दरों में ही नहीं आते 


------------------------------------------------
- आनंद द्विवेदी 
20-07-2012




बुधवार, 18 जुलाई 2012

समय ...



समय, 
सुना था हर दूरियाँ पाट देता है 
बहुत बलवान होता है 
पाया ठीक उल्टा,
सुना था हर ज़ख्म भर देता है ...
मैं जब भी ऐसा सोंचता हूँ मुस्करा पड़ता हूँ 
मैं खुश हूँ 
कि ऐसा नहीं कर पाया वो 
और इसीलिये 
मैंने इंतज़ार को 
वक्त से नापना बंद कर दिया है 

कैलेण्डर नहीं खरीदता अब मैं 
डायरी भी नहीं 
घड़ी बांधना पहले ही छोड़ चुका हूँ 
मुझे बड़े आराम से दिन निकलने का पता चल जाता है 
दिन ढलने का भी 
मेरे लिए अब इससे ज्यादा 
समय का कोई और महत्त्व नहीं ! 

- आनंद द्विवेदी 
१८-०७-२०१२

रविवार, 15 जुलाई 2012

ये दिलों की आग है, दुनिया जला सकते हो तुम




करो कोशिश जिंदगी में रंग ला सकते हो तुम
जोर से चीखो कि सोतों को जगा सकते हो तुम

लाख शोषण जुल्म की गहरी जड़ें हों साथियों
मुझे पुख्ता यकीं है, उनको हिला सकते हो तुम

मत कहो 'अपना मुकद्दर ही बुरा है' दोस्तों
चाह लो गर तो मुकद्दर भी बना सकते हो तुम 

मैं फ़लस्तीनी हूँ, लेबनानी हूँ, ईराक़ी  भी हूँ 

अब फ़कत मज़लूम हूँ मैं, साथ आ सकते हो तुम  

गौर से देखो ये दौलत के पुजारी कौन हैं 

याद रक्खो इन्हें जब चाहो भगा सकते हो तुम

आंसुओं को आँख में शोला बनाकर रोक लो
क्रांति क्या है फिर क़यामत को भी ला सकते हो तुम  

इसे तुम 'आनंद' का शेर-ओ-सुखन मत सोंचना 

ये दिलों की आग है, दुनिया जला सकते हो तुम

- आनंद द्विवेदी
रविवार, 15 जुलाई, 2012





शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

'अन्ना' 'बाबा' को भी अब भगवान होने दीजिये





खुद-ब-खुद ही झूठ सच का ज्ञान होने दीजिए
वरना बेहतर है,  मुझे नादान होने दीजिए

थक गया हूँ जिंदगी को शहर सा जीते हुए
गाँव को फिर से मेरी पहचान होने दीजिये

दो तिहाई से भी ज्यादा लोग भूखे हैं यहाँ
आप खुश रहिये इन्हें हलकान होने दीजिये

रात में हर रहनुमा की असलियत दिख जाएगी
शहर की सड़कें जरा  सुनसान होने दीजिये

बैठकर दिल्ली में किस्मत मुल्क की जो लिख रहे
पहले उनको कम-अज़-कम  इंसान होने दीजिए

उनके  दंगे ,  इनके घपले,  देश को महंगे पड़े  

'अन्ना' 'बाबा' को भी अब भगवान होने दीजिये

कौन जाने  आपको 'आनंद'  अपना सा लगे
साथ  आने  दीजिये,  पहचान  होने  दीजिये

- आनंद द्विवेदी
 जुलाई १३, २०१२ |


बुधवार, 11 जुलाई 2012

यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी





अभी निगाह में कुछ और ख्व़ाब आने दो
हजार रंज़ सही   मुझको   मुस्कराने दो

तमाम उम्र  दूरियों  में काट  दी  हमने
कभी  कभार मुझे पास भी तो आने दो

बहस-पसंद  हुईं  महफ़िलें  ज़माने  की
मुझे सुकून से तनहाइयों  में गाने  दो

सदा पे उसकी तवज़्ज़ो का चलन ठीक नहीं
ग़रीब  शख्स है उसको  कथा सुनाने दो 

किसी की भूख मुद्दआ नहीं बनी अब तक
मगर  बनेगी शर्तिया वो  वक़्त आने  दो

यकीन मानिए दुनिया मुझे भी समझेगी
अभी नहीं, तो जरा इस जहाँ  से जाने दो

क़र्ज़ 'आनंद' गज़ल का भी नहीं रक्खेगा
अभी बहुत है जिगर में  लहू,  लुटाने  दो

- आनंद द्विवेदी
जुलाई ११, २०१२