गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

आखिर क्यों ?


क्यों अंसुओं से भरे तुम्हारे नयन, हमारी व्यथा जानकर ?
क्यों न सहज ही टाला तुमने, इसे जगत की प्रथा मानकर ?

                क्यों मेरा सूनापन तुमको रास न आया
                क्यों तुमने मुझको इतना आकाश चढ़ाया,
                आंसू  बनकर खुद मिटटी में मिलजाता मैं,
                तुमने क्यों मेरी खातिर दामन फैलाया ?
क्यों मेरी उखड़ी सांसों को सुना, दर्द की कथा मनाकर ?
क्यों न सहज ही टाला तुमने, इसे जगत की प्रथा मानकर ?


               जाने क्या-क्या खोकर मैंने तुमको पाया,
               तुमने मेरा परिचय तृष्णा से करवाया ,
               मेरी काली सांझें मुझको डसती रहती ,
               क्यों तुमने आकर चुपके से दीप जलाया ?
क्यों तट से तुम लौट न पाए मुझको सागर मथा जानकर ?
क्यों न सहज ही टाला तुमने, इसे जगत की प्रथा मानकर ?

              क्यों मुझको खोने का डर मन में बैठाया,
              क्यों अपनी खुशियों को खुद ही आग लगाया
              मैं कंटक पथ का अनुगामी था, प्रिय तुमने
              मेरी खातिर क्यों प्रसून पथ को ठुकराया ?
आखिर क्यों पी डाला तुमने मेरे विष को, सुधा मानकर ?
क्यों न सहज ही टाला तुमने, इसे जगत की प्रथा मानकर ??

                 --आनंद द्विवेदी २४-०२-२०११

दर्द पन्नों पे उतरा किया मैं रातों को




याद में तेरी गुजारा  किया  मैं  रातों  को,
अपने ख्वाबों को संवारा किया मैं रातों को !

अपनी किस्मत में मुकम्मल जहान हो कैसे ,
बना - बना के बिगाड़ा  किया मैं रातों को  !

पास रहकर भी बहुत दूर बहुत दूर हो तुम,
दूर रहकर भी पुकारा किया मैं रातों को !

दर्द तुझमे भी है लेकिन वो किसी और का है,
तेरा वो दर्द  दुलारा  किया मैं  रातों  को !

तेरी रुसवाई भी कमबख्त भा गयी मन को,
इसी का लेके सहारा जिया मैं रातों को !

तुने मुझमे भी किसी और की झलक देखी,
तभी से खुद को निहारा किया मैं रातों को !

बड़ा हसीन सा 'आनंद' जिंदगी ने दिया,
दर्द पन्नों पे उतारा किया मैं रातों को !!

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

फांस बनकर गले में अटकी हुई है जिंदगी



फाँस बनकर गले में अटकी हुई  है जिंदगी ,
कशमकश के शहर में भटकी हुई है जिंदगी !

वो जो पत्थर सामने है, वफ़ा का है प्यार का,
उसी पर खूब जोर से  पटकी हुई  है जिंदगी ! 

अपने टूटे पाँव लेकर जो पड़ी है खाट  पर , 
उनके दर से धूल सी झटकी हुई है जिंदगी ! 

सड़क पर की धूप से बेचैन होकर, भागकर 
छत में पंखे से यहाँ  लटकी  हुई  है जिंदगी !

छटपटाता हुआ एक 'आनंद' इसमें कैद है ,
दर्द से हर जोड़ पर चटकी हुई है जिंदगी  !!

 --आनंद द्विवेदी १९/०२/२०११

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

एक संजय चाहिए !


हम भारतवासी हैं
भारत !
जिसमे नेता धृतराष्ट्र  हैं
जनता....गांधारी है
पट्टी चेतना पर भी है
आत्मा पर भी !!
भारत
पट्टी के पीछे आँखों में है
दूर दृष्टि का भ्रम पाले
किन्तु अन्धा सा !
भारत
खड़ा है स्तब्ध निह्सहाय
गांधारी धृतराष्ट्र को टटोल रही है
और धृतराष्ट्र ?
वह न आत्मावलोकन कर पा रहा है
न गांधारी को देख पा रहा है
दोनों में एक समानता है अंधेपन की
एक संजय चाहिए भारत को,
जो आगे बढ़कर गांधारी की आँखों से
पट्टी नोच ले
झंझोड़ दे  अंधी चेतना को
बस........!
इतने से काम के लिए
एक संजय चाहिए
क्योंकि बाकी सब अपने आप हो जायेगा !!

           --आनन्द द्विवेदी ०९/०२/२०११

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

कहाँ पर खो गया हूँ मैं ?


कहाँ पर खो गया हूँ मैं ?
              जिंदगी के शीत को सहकर ,
              व्यथा का  ताप  सहकर   ,
              सत्य को पहचानकर, ढोकर,
              समय का... श्राप सहकर ,
खिलौना  हो गया हूँ मैं  !
             
              स्वयं को भी ...बेंचकर,
              भीतर हजारों ग़म छिपाकर,
              एक विधवा सी ...ख़ुशी से ,
              होंठ  रंगकर, मुंह सजाकर, 
घिनौना हो गया हूँ मैं !

               ढह गए सब शिखर, थककर 
               सो गए... सब दीप  गण , 
               ख़ुशी की चाहत समेटे  ,
               सो गए ..  प्रत्येक क्षण  ,
बिछौना   हो गया  हूँ मैं !
कहाँ पर खो गया हूँ मैं  !!

      --आनन्द द्विवेदी  ०८/०२/२०११



मैं ही मिला हूँ उससे गुनहगार की तरह


उसने तो किया प्यार मुझे 'प्यार' की तरह,
मैं ही मिला हूँ उससे गुनहगार की तरह !

कुछ  बेबसी  ने  मेरे  पांव  बाँध  दिए थे,
कुछ मैं भी खड़ा ही रहा दीवार की तरह !

इस दिल में सब दफ़न है चाहत भी आरजू भी ,
मत खोदिये मुझे, किसी मज़ार  की तरह !

देने को कुछ नही था मिलता मुझे कहाँ से
दुनिया के क़ायदे हैं, बाज़ार की  तरह  !

खारों पे ही खिला किये हैं गुल ये सोंचकर,
मैं जिंदगी को जी रहा हूँ खार की तरह  !

खामोश निगाहों की तहरीर पढ़ सको तो,
'आनंद' भी मिलेगा तुम्हे यार की तरह !!

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

आज तक नही मिला है मुझे.....



आप सा यार आज तक नही मिला है मुझे,
आपका प्यार आज तक नही मिला है मुझे!

आपको चाँद सितारों पे ढूंढ  आया हूँ,
दरो- दीवार आज तक नही मिला है मुझे!

बेवफाई के बाद भी, जो मुस्कराया हो,
वो अदाकार आजतक नही मिला है मुझे!

भूख के बावजूद, जो ग़ज़ल सुनाता हो,
ऐसा फ़नकार आजतक नही मिला है मुझे!

वक़्त मिलता तो, तेरा वक़्त बदल देता मैं,
वक़्त तू यार आज तक नही मिला है मुझे!

जब मिलेगा यही 'आनंद' मिलेगा  तुमको ,
ये  ऐतबार आजतक नही मिला है मुझे !!

          --आनंद द्विवेदी ०३/०२/२०११

मेरे गीत !





 मेरे गीत दर्द की निशानी हैं,
मेरे गीत प्यार की रवानी हैं,
मेरे गीत अनकही कहानी हैं,
मेरे गीत मेरी जिंदगानी हैं !
               मेरे गीत मेरे कितने पास हैं,
               किन्तु जाने क्यों जरा उदास हैं,
               मेरे दिल ने मेरा साथ छोड़ दिया,
               मेरे गीत अब भी मेरे साथ हैं,
मेरे गीत आपकी जुबानी हैं,
मेरे गीत सिन्धु की मथानी हैं!

               मेरे गीत पंखुड़ी प्रसून की,
               मेरे गीत वादियाँ, सुकून की,
               सुख के मंद झोंके मेरे गीत हैं,
               मेरे गीत आंधियाँ जूनून की ,
मेरे गीत सब्र की कहानी हैं,
मेरे गीत 'चश्मनम' का पानी हैं !.

                मेरे गीत गूंजते प्रभात में,
                खिलखिलाहटों में आर्तनाद में,
                मेरे गीत हमसफ़र हैं दर्द के,
                साथ रहें हर्ष में, विषाद में,
मेरे गीत चांदनी सुहानी हैं,
मेरे गीत आज पानी-पानी हैं!

               मेरे गीत गुनगुनाइए जनाब,
               मेरे साथ-साथ गाइये जनाब,
               आपको नशा जरूर आएगा,
               मेरे गीतों में घुली हुई शराब,
मेरे गीत गर्दिशे जवानी हैं,
मेरे गीत ग़म की राजधानी हैं !
मेरे गीत अनकही कहानी हैं,
मेरे गीत मेरी जिंदगानी हैं !!

     --आनन्द द्विवेदी ०३/०२/२०११