गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

इन दिनों

वह कहती है कि
तुम उस भूतनी को भूल क्यों नहीं जाते
हा हा हा हा हा हा हा
और कहती है कि
तुम्हारा अक्षर - अक्षर उसे पुकारता है आज भी
मुझे हज़ार गलियां देती है
और तुम्हें लाख,
वह यह भी कहती है कि वो चुड़ैल तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ती
तुम्हारी एक एक साँस में झलकती है वो

सच बताऊँ ?
इन दिनों
अच्छा लगता है जब कोई देखता है
मुझमे तुमको
और उसके बाद
बुरा भला कहता है तुमको,

इन दिनों
जाने कैसा हो गया हूँ मैं

- आनंद 

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

बिन लड़े क्यों मर रहा है आदमी

क्या तमाशे कर रहा है आदमी
अब नज़र से गिर रहा है आदमी 

बिन लड़े जीना अगर संभव नहीं
बिन लड़े क्यों मर रहा है आदमी 

हर जगह से हारकर, सारे सितम 
औरतों पर कर रहा है आदमी 

देश की नदियाँ सुखाकर, फ़ख्र से 
बोतलों  को  भर रहा है आदमी
  
हाथ में लेकर खिलौने एटमी  
आदमी से डर रहा है आदमी 

योग, पूजा, ध्यान नाटक है, अगर  
भूख से ही लड़ रहा है आदमी 

है पड़ी स्विच-ऑफ दुनिया जेब में 
ये तरक्की कर रहा है आदमी  

- आनंद 


सोमवार, 22 अप्रैल 2013

जो है सो है


तुमने भी
कुछ तो खोया है
और उसका अहसास तक नहीं,
तुम शुरू से
एक नंबर की लापरवाह हो,

परेशान मत होना
मैंने सहेज लिया है
वो सब
जो बेकार है तुम्हारे लिये
किसी के लिये भी

मेरा क्या
उदास दिन, उदास रातें
उदास मौसम
उदास हवा, पानी, पेड़-पौधे
किसी पर भी इल्ज़ाम लगा दूँगा
कुछ भी

पर नहीं कहूँगा
कि तुम हो कहीं
मेरे अंदर अब भी
तुम्हारे लाख न चाहने के बावजूद

देखो खीझो मत !
अब
जो है सो है |

- आनंद

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं

रोटी की कद्र है मुझे दिलदार की तरह
पैसा भी जरूरी है किसी यार की तरह

हर बात आईने की तरह साफ़ हो गयी
बैठा हूँ घर में जब कभी बेकार की तरह

कितनी बुराइयाँ हों मगर काम आऊँगा
अब भी हूँ अपने गाँव के बाज़ार की तरह

जब भूख औ फ़साद साथ हों तो जानिये 
सरकार काम कर रही सरकार की तरह

दुश्मन भले न हों, ये किसी काम के नहीं
जो लोग चुप हैं वो हैं  गुनहगार की तरह

'आनंद' कई लोग राज़ जानते हैं ये
कैसे रहें वो हर जगह मुख्तार की तरह

_ आनंद 

हम रामराज लायेंगे गुजरात की तरह

हम रामराज लायेंगे गुजरात की तरह
इस देश को बनायेंगे गुजरात की तरह

बस एक बार होंगे जो होने हैं फ़सादात
झगड़े की जड़ मिटायेंगे गुजरात की तरह

अपराध नहीं पनपेगा, मुज़रिम न बचेगा
सबको सज़ा दिलायेंगे गुजरात की तरह

क्या कीजियेगा रंग-रंग के गुलों का आप
कुछ रंग हम हटायेंगे गुजरात की तरह

आतंकियों, जहाँ भी तुम्हारा मिला वजूद
वो बस्तियाँ मिटायेंगे गुजरात की तरह

पहले तमाम काम एजेंडे के करेंगे
पीछे विकास लायेंगे गुजरात की तरह

इस बार जो  खायेंगे शपथ संविधान की
फिर घर नहीं जलायेंगे गुजरात की तरह

'आनंद' तू तो अपना है बेकार में न डर
हम गैर को सतायेंगे गुजरात की तरह

- आनंद


सोमवार, 15 अप्रैल 2013

इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये

इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये
सज़दे के वक़्त यूँ न मुझे  याद आइये

नज़रें नहीं मिला रहा हूँ अब किसी से मैं
ताक़ीद कर गए हैं वो, कि, ग़म छुपाइये

मतलब निकालते हैं लोग जाने क्या से क्या
आँखें छलक रहीं हो अगर मुस्कराइये

वो शख्स मुहब्बत के राज़ साथ ले गया
अब लौटकर न आयेगा, गंगा नहाइये

सदियों का थका हारा था दामन में रूह के
'आनंद' सो गया है, उसे मत जगाइये 

- आनंद



शनिवार, 13 अप्रैल 2013

ये ज़ख्म जरा और उभर आये तो अच्छा

ये  ज़ख्म जरा और  उभर आये  तो अच्छा
वो शख्स इधर होके गुजर जाए तो अच्छा

उसकी निगाहे-नाज़ बने क़त्ल का सामाँ
खंज़र की तरह दिल में उतर जाए तो अच्छा

जिसने भी कहा हो कभी, 'है इश्क़ ही ख़ुदा'
अब अपने बयानों में असर लाये तो अच्छा

वैसे तो वो मिसाल है अपने में आप ही
आदत भी अगर थोड़ी सुधर जाए तो अच्छा

सड़कों पे देर रात,  भटकती  है  एक  शै
उसके ज़ेहन में घर भी कभी आये तो अच्छा

'आनंद' यही इल्तिज़ा करता है रात दिन
तेरा लबों पे नाम हो मर जाए तो अच्छा

- आनंद




आँखों की बरसात के बीच ....

जिस विज्ञान ने हमें मिलाया था
अंततः उसी ने छीन भी लिया
एक फोन
एक मेल
और बस नीला गहरा आसमान
जिसका कहीं कोई ओर छोर नहीं
मैं चाहता हूँ केवल इतना
कि
मेरे मरने की खबर
तुम तक पहुँचे
और तुम्हारे न रहने की मुझ तक
अगर तुम्हें लगता है कि
मुझे इतना भी मिलने का हक़ नहीं
तो तुम बेवफा हो !

- आनंद

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

शोर क्यों हम बेवफ़ाई का मचाएं दोस्तों

शोर क्यों हम बेवफ़ाई का मचाएं दोस्तों
क्यों नहीं हम भी नया इक गुल खिलाएं दोस्तों

आजकल तो ख्वाब भी बिकने लगे बाज़ार में 
आइये खेती करें सपने उगायें दोस्तों

क्या हुआ है वो कहीं बरसात में भीगे हैं क्या
छू रही हैं जिस्म को महकी हवाएँ दोस्तों

इश्क़ भी करना निभाना भी वफ़ा भी हाय रे
एक  उस मासूम पर कितनी बलाएँ दोस्तों

अब खुदा से भी बहुत उम्मीद करना व्यर्थ है 
काम न आईं अगर 'उसकी' दुआएँ दोस्तों 

सारे क़ातिल फ़ातिहा पढ़ने इकठ्ठा हो गए 
फ़ैसला दुश्वार है, किसको बुलायें दोस्तों

मुझको कितनी दिक्कतों में डालकर जाती हैं ये
उनकी यादों से कहो अक्सर न आयें दोस्तों

बेरुखी उनकी, हमारी बेबसी बे-इंतहाँ
हैं, मेरे 'आनंद' होने की सजायें दोस्तों

- आनंद 

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

मेरे आँसू झूठे लिख

मेरी राम कहानी लिख
ये बेबाक बयानी लिख

मरघट जैसी चहल-पहल
इसको मेरी जवानी लिख

मेरे आँसू झूठे लिख
मेरे खून को पानी लिख

मेरे हिस्से के ग़म को
मेरी ही नादानी लिख

मेरी हर मज़बूरी को
तू मेरी मनमानी लिख

ऊँघ रहे हैं लोग, मगर
मौसम को तूफानी लिख

मेरे थके क़दम मत लिख
शाम बड़ी मस्तानी लिख

ज़िक्र गुनाहों का मत कर
वक़्त की कारस्तानी लिख

दिल से दिल के रिश्ते लिख
बाकी सब बेमानी लिख

जब भी उसका जिक्र चले
दुनिया आनी-जानी लिख

लिखना हो 'आनंद' अगर
विधना की शैतानी लिख

- आनंद