शनिवार, 9 अप्रैल 2011

क़तरा क़तरा एक समंदर सूख गया





लम्हा लम्हा करके लम्हा छूट  गया
क़तरा  क़तरा एक समंदर सूख गया  !

और हादसों के डर से, वो तनहा था  ,
तनहा तनहा रहकर भी तो टूट गया !

मैं कहता था न, ज्यादा सपने मत बुन, 
वही हुआ , सपनों का दर्पण टूट गया  !

फिर कोई मासूम सवाल न कर बैठे ,
बस इस डर से ही, मैं उससे रूठ गया  !

मेरी फाकाकशी  सभी को मालूम थी ,
फिर भी कोई आया  मुझको लूट गया

उसकी बातों से तो ऐसा लगता  था ,  
जैसे कोई दिल का छाला फूट गया !

जो 'आनंद' नज़र आता है, झूठा है ,
उसका सच तो कब का पीछे छूट गया !

  --आनंद द्विवेदी ०९/०४/२०११