शुक्रवार, 26 मार्च 2010

मेरी ग़ज़ल से कहीं भूख जो मिटी होती

मेरी ग़ज़ल से कहीं भूख जो मिटी होती,
किसी गरीब की इज्ज़त नहीं लुटी होती |

कोई फुटपाथ पर भूखा नहीं सोया होता,
मेरी कलम से अगर रोटियां बटी होती |

मेरी ग़ज़ल है वो झुर्री भरा बूढा चेहरा,
कैसे इज्ज़त को छुपाये है इक फटी धोती |

भरी जवानी में भूखा नहीं सोया होता,
वक़्त से पहले कमर भी नहीं झुकी होती |

अगर ईमान बेंचकर वो कमाता दौलत,
ब्याह करने को नहीं बेटियाँ बची होती |

           ---आनंद द्विवेदी .

4 टिप्‍पणियां:

  1. कोई फुटपाथ पर भूखा नहीं सोया होता,
    मेरी कलम से अगर रोटियां बटी होती !

    मेरी ग़ज़ल है वो झुर्री भरा बूढा चेहरा,
    जिसकी इज्ज़त को छुपाये है एक फटी धोती!
    Lajavab panktiyan-----hardik badhai.ummeed hai aage bhee aise hee rachnayen padhvayenge.

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  2. शानदार गजल ।

    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,

    धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,

    कलम के पुजारी अगर सो गये तो

    ये धन के पुजारी वतन बेंच देगें।

    हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ , साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " http://janokti.feedcluster.com/ से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .

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  4. भरी जवानी में भूखा नहीं सोया होता,
    वक़्त से पहले कमर भी नहीं झुकी होती !

    अगर ईमान बेंचकर वो कमाता दौलत,
    ब्याह करने को नहीं बेटियाँ बची होती!!
    ------------------------------------

    Umda Anand ji

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