शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

बिन कहे

तुम हमेशा कहते हो
"बातें तो कोई तुमसे ले ले'
शब्द बुनना तुम्हारा काम है"
पर तुम्हीं देखो
शब्द कितने विवश हैं,
बिन कहे ही लुटाया तुमने
मुझ पर हर रंग,
बिन कहे ही दिन रात धोया मैंने
आँसुओं से तुम्हारी मूर्ति,
बिन कहे ही  चुपचाप करता हूँ
अपने हर सपने का श्रृंगार,
जब जब बिना कहे तुम तोड़ देते हो
एक बारीक धागा ...
मैं रात रात कातता हूँ सूत
और बिना कुछ कहे
बना लेता हूँ एक झोली
अल सुबह बिना कुछ कहे
फैला देता हूँ तुम्हारे सामने
बिन कहे तुम बरसा देते हो उसमें
प्यार या तिरस्कार...
स्वयं की इच्छानुसार,

मेरे अन्दर एक भागीरथ है
बिन कहे ही वो ले आएगा
एक दिन ...तुमको
जन्मों से बंजर
मेरे वज़ूद  की पथरीली ज़मीन पर

मगर सुनो !
क्या तुम नहीं समझ सकते
एक बात  बिन कहे
कि
तुम्हारे बिना
न मेरा कोई अस्तित्व है
न कोई जीवन !

- आनंद





बुधवार, 20 नवंबर 2013

ऐसे ही ठीक हूँ

तुम्हें
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है

__________


मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...

मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !

मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ  !

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ओ प्रवासी परिंदे ...


प्रवासी परिंदे की तरह
तुम
जब उड़ कर आये
मेरे शहर की गलियों में,
मैंने तैयार रखीं थीं
प्रतीक्षारत आँखें
थोड़ा सा इंतज़ार
बहुत सारी उम्मीदें …
और हाँ कुछ बेवकूफ़ियाँ भी,

इस पूरे एक पखवाड़े
मैंने पहने एकदम चमचमाते जूते
रोज कलप और इस्तरी किये कपड़े
ध्यान रखा कि पूरी गोलाई में कटे रहें नाखून
और आईने को एक भी बाल
सफ़ेद नज़र न आये

आज जब तुम लौट रहे हो 
अपने आशियाने की तरफ
मैंने अपने अंदर के शरारती बच्चे को
पीट दिया है बेवजह,
अचानक हो उठा हूँ शांति प्रिय
इतना बूढ़ा  … और थका
कि
अब नहीं दे सकता खुद को
कुछ भी !

- आनंद





गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बची हुई ध्वनियाँ

वो पंक्षी
आज नहीं रोया
छटपटाया भी नहीं
भूल से भी नहीं किया किसी से
दूसरे उड़ते हुए पंक्षियों के बारे में बात
बल्कि बैठा बड़े ही इत्मीनान से
अपने ही हाथों से
नोचता रहा  .... एक एक करके
अपने पंख,
अपने कभी न उड़ पाने का ऐसा विश्वास....
आखिर दुनिया
विश्वास  से ही तो चलती है !

तुम्हारा न होना
एकदम ऐसा ही है
जैसे
दिन का न होना
पानी का न होना
या फिर न होना शब्द का
इस बार बची हुई ध्वनियाँ भी
साथ ले जाना तुम !

चीर फाड़ देने
नसें काट देने / बदल देने से
क्या होगा ?
विज्ञान को कुछ नहीं पता
दिल के बारे में
और न ही उसको लगने वाले रोग के बारे में !

- आनंद

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

अन्दर दीपक बुझा हुआ है

अंदर दीपक बुझा हुआ है पर बाहर दीवाली है
ऊपर से सब हरा भरा है अंदर खाली खाली है

मौसम का रुख देख देख कर मुझको ऐसा लगता है
जिसमें चोट सताती है,  वो पुरवा चलने वाली है

मेरा मुझमे नहीं रहा कुछ, अच्छा बुरा उसी का है
हम जिस सावन के अंधे हैं ये उसकी हरियाली है

मुझको तो कुछ पत्थर भी अब इंसानों से लगते हैं
इंसानों में भी पत्थर की नस्लें आने वाली हैं

कितने दिन 'आनंद' रहेगा तू बेगानी बस्ती में
अपनेपन की परछाई भी आँख चुराने वाली है

-आनंद 

रविवार, 10 नवंबर 2013

बे-उमंग !

सुबह गुनगुने सूरज के बगल में
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था

मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि 
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए

और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया

तुम पर अटूट विश्वास …  मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी.....  मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग

तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !

- आनंद

शनिवार, 9 नवंबर 2013

मन के या बे-मन के हैं


मन के या  बे-मन के हैं  
हम भी फूल चमन के है

मेरे ग़म का रंज़ न कर
हम ऐसे बचपन के हैं 

सच को देखे कौन भला 
सारे दृश्य नयन के हैं

बातें त्याग तपस्या की
लेकिन ध्यान बदन के हैं

अपने प्राण-पखेरू भी
कल को नील गगन के हैं

एक हो गयी है दुनिया
तन मन से सब धन के हैं 

किससे क्या उम्मीद करूँ
सब तो अपने मन के हैं

साँसों तुम ही थम जाओ
सब झँझट धड़कन के हैं

है 'आनंद' नाम भर का
दर्द सभी जीवन के हैं

 - आनंद









गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तू है ख़ुदा, तो कर ये...


तू है ख़ुदा, तो कर ये एहतराम के लिए
थोड़ा सा दर्द भेज, आज  शाम के लिए

जो रिंद कभी होश में आया न उम्र भर
उसको न रोक यार, एक ज़ाम के लिए

इतनी न दिखा मुझपे सितमगर इनायतें
तू ही  बहुत है, हसरते-नाकाम के लिए

मुंसिफ़ है तू, गवाह भी है, मुद्दयी भी है
हाज़िर है गुनहगार भी इल्ज़ाम के लिए

आनंद ! कभी जिंदगी  से पूछ भी तो ले
है नाम के लिए या किसी काम के लिए

- आनंद




बुधवार, 6 नवंबर 2013

सुनो तुम ...

गोली मारो प्रेम को
हो सके तो कभी एक बात का ख्याल करना
एक जोड़ी गीली आँखें
एक अदद खाली खाली दिल
इनको जैसे तैसे संभाले एक काया
और है...
तुम्हारे पास
तुम्हारे व्यक्तित्व के अतिरिक्त,
जिसका अपना कुछ नहीं
पहचान भी नहीं !

सुनो...! स्टैंडबाई चीज़ें भी
कभी इस्तेमाल न होने पर
इस्तेमाल लायक नहीं रहती फिर !

- आनंद 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

लगा लो दाँव !



तुम्हारी होगी एक्का की तिरियल
तुम जब तक पत्ते खोलते नहीं
मैं चलता जाऊँगा दाँव
अपने 'कलर' के बूते पर ही
तुम चतुर खिलाड़ी होगे
मगर अपने रंग पर मेरा भी भरोसा
अटूट है
तुम सब कुछ जीत के भी हारोगे
मैं सब कुछ हार के भी तुम्हें जिताऊंगा
देखता हूँ पहले 'शो' कौन कराता है

कुछ लोग
पत्ते सामने गिरते ही उठा लेते हैं
पहर भर लगाते हैं गणित
मगर कुछ लोग.… 
छूते भी नहीं पत्ती,
अंधी चल देते हैं
अपनी सबसे अहम बाजी,
इस तरह मुस्कराओ मत
ऐसे लोग केवल हारने के लिए खेलते हैं
क्योंकि सामने जीत रहा होता है
उनका
खुदसे भी ज्यादा अपना

तुम कोई बड़ा दाँव नहीं खेलोगे
जानता हूँ
तुम्हें न खुद पर यकीन है
न अपने पत्तों पर
और न ही मुझ पर
एक तीसरा खिलाड़ी भी है.....  मुकद्दर !
अगली बाज़ी  उस पर ही छोड़ते हैं
अक्सर तुरुप की चाल
उधर से ही आती है !

- आनंद
 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दिये का जलना !


दिये का जलना
अभिमान नहीं है
(अँधेरा भगाने का )
बड़प्पन नहीं है
(प्रकाश फैलाने का)
दर्द भी नहीं है
(पीड़ा से जलने का )
यह एक सहज क्रिया है
जिसमें शामिल है तीन
एक आग जो जलाती है
एक बाती जो जलती है
एक माध्यम जो बहता है
दोनों के बीच

तुम आग हो
प्रेम माध्यम है
और मैं बाती
जलना सुखद है
दिये का मतलब ही है जलना
उसकी पहचान है यह

दिया बुझता कहाँ है
बुझती है आग
तुम न होते
तो ये सुख
नहीं होता मेरे नसीब में
एक बुझे दिये की पीड़ा से बचाकर
मुझे जलाये रखने के लिए
दिल से शुक्रिया मेरे मीत !

- आनंद