तुम्हें
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है
__________
मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...
मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !
मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ !
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है
__________
मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...
मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !
मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ !
वाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंकाफी सुंदर चित्रण ..... !!!
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे.....!!!
खामोशियाँ
प्रिय ब्लागर
जवाब देंहटाएंआपको जानकर अति हर्ष होगा कि एक नये ब्लाग संकलक / रीडर का शुभारंभ किया गया है और उसमें आपका ब्लाग भी शामिल किया गया है । कृपया एक बार जांच लें कि आपका ब्लाग सही श्रेणी में है अथवा नही और यदि आपके एक से ज्यादा ब्लाग हैं तो अन्य ब्लाग्स के बारे में वेबसाइट पर जाकर सूचना दे सकते हैं
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