मंगलवार, 19 अगस्त 2014

तुम्हारा वज़्न

ग़ज़ल के मिसरे में
एक वज़्न ज्यादा तो हो सकता है
पर हरगिज़ नहीं चल सकता एक वज़्न कम

इसीलिए जब तुम नहीं होते
नहीं होती हैं मुझसे ग़ज़लें
नहीं बनते हैं मिसरे

तब मैं रहता हूँ
केवल
अतुकांत  
तुम...
मेरा तुक भी हो
अंत भी !

- आनंद