रविवार, 28 जनवरी 2018

मैं क्यों अख़बार होना चाहता हूँ

कभी गुलज़ार होना चाहता हूँ
कभी बेज़ार होना चाहता हूँ

हिमाक़त चाहतों की देखिये तो
मैं खुदमुख़्तार होना चाहता हूँ

न मुझसे इश्क़ की रस्में निभेंगी
मैं इज़्ज़तदार होना चाहता हूँ

ज़माना है बड़ी उपयोगिता का
मगर बेकार होना चाहता हूँ

अगरचे तुम कोई ग़ुल हो चमन का
उसी का ख़ार होना चाहता हूँ

कोई भी नाव हो केवट कोई हो
मैं दरिया पार होना चाहता हूँ

है जीवन एक लंबी सी कहानी
मैं उपसंहार होना चाहता हूँ

मैं किनसे हूँ मुख़ातिब और क्यों हूँ
मैं क्यों अख़बार होना चाहता हूँ

कभी 'आनंद' की गलियों में आओ
मैं बंदनवार होना चाहता हूँ !

© आनंद