मंगलवार, 30 जुलाई 2013

प्रेम के बाद ...


दोनों ही तरफ से
अफ़सोस व्यक्त कर दिया गया था
'प्रेम' के बाद। ….
फिर चला दूसरे को बुरा बताने का दौर
एक दूसरे के दोस्तों ने
आनंद लिया निंदा रस का …
सहानुभूति जताई और ऐसे 'वक़्त' में खूब साथ दिया…।

किसी ने जाना कि
गरीब से प्रेम एक बड़ी भूल थी
(वस्तुतः अब सारा जोर इस पर था की उसे प्रेम न कहा जाए)
इस क्लास के लोग प्रेम को नहीं समझते
बनते हैं उन्मुक्तता में रूकावट

किसी ने जाना कि
महान लोग कितने खोखले होते हैं अन्दर से
रहते हैं हमेशा एक नए शिकार की तलाश में
प्रेम के नाम पर।
साझा हितों के लिए एक समूह में रहते हैं
जैसे बाबाओं का झुण्ड
गद्दीधर महंत देते हैं प्रेम पर प्रवचन
चेले चेलियाँ करती हैं जय-जय कार
जय  सात्विक प्रेम
जैसे व्रत में फलाहार !!

- आनंद