रविवार, 2 अक्तूबर 2011

इतना कुछ दे डाला है.....






राज छुपाये दुनिया भर के, खाक जहाँ की छान रहे
कितने ज्ञानी मिले राह में, हम फिर भी नादान रहे

सारे जीवन भर के शिकवे, अपने साथ ले गये वो
मेरे घर भी ख्वाब सुहाने, दो दिन के मेहमान रहे

आखिर उनका भी तो दिल है, दिल के कुछ रिश्ते होंगे
क्यों ये बात न समझी हमने, बे मतलब हलकान रहे

अपने से ही सारी दुनिया, बनती और बिगड़ती है
जिस ढंग की मेरी श्रद्धा थी, वैसे ही भगवान रहे

तू है प्राण और मैं काया, तू लौ है मैं बाती हूँ
ये रिश्ते बेमेल नही थे, भले न एक समान रहे

जाते जाते साथी तूने, इतना कुछ दे डाला है
साथ न रहकर भी सदियों तक, तू मेरी पहचान रहे

दुआ करो 'आनन्द' सीख ले, तौर तरीके जीने के
फिर चाहे तेरी महफ़िल हो, या दुनिया वीरान रहे


   -आनन्द द्विवेदी, ०२/१०/२०११