शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

नींद की चिट्ठी

रात नींद ने एक चिट्ठी लिखी
नाम तुम्हारा 
पता मेरा ...

सांसें महक सी गयीं 
होंठ खिल पड़े एक मुद्दत बाद 
वही विश्वाश 
वही अपनापन 
आँखें फिर से शरारती हुईं 
तुम्हारे झूले पर बैठे हम पल भर को 

वही चिड़ियों की चहचहाहट ...
मेंहदी इस बार भी अच्छी चढ़ी है
तुमने उतने ही मन से
मुझे खिलाया अपने हाथ से बना खाना
सच कहता हूँ
मुझे बहुत अच्छा लगा

तुम ख्वाबों में
अब भी
वैसी की वैसी हो ...
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- आनंद