रविवार, 1 मार्च 2020

शहर में चाँदमारी

हवा में गंध तारी हो गयी है
शहर में चाँदमारी हो गयी है

यही बोया था हमने जो उगा है ?
ये कैसी काश्तकारी हो गयी है

लहू को देख, खुश होने लगे हैं
ये क्या आदत हमारी हो गयी है

वो इन्सां था कि प्यादा, मर गया है
मगर कुर्सी खिलाड़ी हो गयी है

संपोले दूध पीकर डस रहे हैं
सियासत को बीमारी हो गयी है

गज़ब जस्टिफिकेशन हो रहे है
जुबाँ सब की कटारी हो गयी है

है अगला कौन सा घर कौन सा सर
अभी मर्दनशुमारी हो गयी है

यहाँ से देश की क्या राह होगी
हमारी जिम्मेदारी हो गयी है

अभी 'आनंद' का मौसम नहीं है
ख़ुशी पर रंज भारी हो गयी है ।

© आनंद










4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भावयुक्त पंक्तियाँ । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/







    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।







    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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