शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

मेरा जब फाकों का मौसम...

मेरा जब फाकों का मौसम, उनका है त्योहारों का
मेरा रुख है गाँव-गली का, उनका है बाजारों का

देश चलाने वाले हाकिम, जनगणना करवा लेंगे
एक अनार रहेगा भाई, अब  हजार बीमारों का

पैसे की ताकत भी देखी, मुफ़लिस की मजबूरी भी
कलुवा की बेटी ने देखा, गुस्सा इज्ज़तदारों का

किसके हाथों में बंदूकें, किसके सीने में गोली
चाहे जिसका भी घर उजड़े, काम सियासतदारों का    

इसे हलफ़नामा ही समझो, वैसे ये ख़ामोशी है
दिल के जख्मों से लेना है काम मुझे अंगारों का

वैसे तो 'आनंद' बहुत है, मीठी मीठी बातों में
लेकिन अब लिखना ही होगा किस्सा अत्याचारों का

- आनंद



3 टिप्‍पणियां:

  1. जरुर अत्याचार कब तब सहन करेगा कोई!
    सबकी एक सीमा होती है ....
    ..जीवन अनुभव से निकली यथार्थ कृति ..

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  2. बहुत खूब चित्रण किया है ,सियासतदारो का, शुभकामनाये


    यहाँ भी पधारे ,
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html

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  3. 'दिल के जख्मों से लेना है काम मुझे अंगारों का'
    वाह!

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