गुरुवार, 8 मार्च 2012

आखिरी क़ैद





कितना फर्क है
मुझमें और तुममें
शरीर की सीढ़ियों के उस पार..तुम
कितनी सहज सी लगती हो
जैसे सवार  हो घोड़े पर, या कि
एक जादुई कालीन है तुम्हारा शरीर
जिस पर चढ़कर तुम
जब चाहो .... जिस लोक में
जा सकती हो
किसी भी
और किसी के भी संसार में ,
दरवाजे के बाहर ही
शरीर को इंतजार करता छोड़कर
बेहिचक , दनदनाते हुए ...
किसी के भी अन्दर तक पंहुच जाना
कितना सुगम है
तुम्हारे लिए !

और एक मैं हूँ ...
एक कदम भी कहीं बढ़ाता हूँ
तो ये शरीर साथ चल पड़ता है
पता नही ये मुझे ढो रहा है
या मैं इसको .
हर समय टकटकी लगाये
ऐसे देखता रहता है...जैसे जन्मों का कर्जदार हूँ इसका
और इस बार सारा वसूलेगा  सूद सहित
या फिर ऐसे देखता है जैसे .
मौत के समय मेरे पापा ने मुझे देखा होगा
तब.... जबकि मैं वहां टाइम से नहीं पहुँच पाया था ...और ...

एक दिन इसकी नज़रों से बचकर
भाग आऊंगा मैं तुम्हारे पास
यह जानते हुए भी कि .... तुम
नही मिलोगी मुझे
फिर भी मैं आऊंगा तो
और साथ लाऊंगा
अपनी बहुत सारी बेवकूफियां
थोड़े से आंसू  ....और
ढेर सारा दीवानापन !
..........
तुम ऐसा करना
मेरे लिए थोड़ा सा  'राजमा चावल'
एक कप चाय ...वैसी ही (दूध कम चीनी बहुत कम और पत्ती ज्यादा )
जरा सी मेंहदी कि खुशबू ...और
एक टुकड़ा...हंसी का
छोड़ जाना बस ...............
मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
क़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है 

-आनंद द्विवेदी
६ मार्च २०१२

 

21 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
    क़ैद नही रख़ पायेगा
    बाहर आने के लिए मैंने ....
    अन्दर ही अन्दर
    सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
    बहुत दर्द है इन शब्दों में..

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    1. शुक्रिया संध्या जी !
      बहुत गरीब था मनहूस मर गया होगा
      नाम 'आनंद' मगर दर्द की फसल था वो !!

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  2. अत्यंत भावपूर्ण ...
    बहुत सुंदर रचना ...आनंद भाई ...

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  3. आज होली के दिन कैसे कैसे विचार मन में आ रहे हैं भाई ?

    बहुत भावमयी रचना ...

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    1. दीदी सादर प्रणाम !
      उम्र भर तुम भी जलो मेरी तरह
      बोल कर ये सजा गयी होली !!

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  4. आनंद.....
    क्या लिखूं...
    मार्मिक....?
    भावपूर्ण....?
    बहुत सुन्दर....?
    अति उत्तम....?
    बहुत दर्द है आपके शब्दों में...?
    और भी न जाने क्या क्या.....???
    अभी और भी कमेंट्स आने बाकी हैं.....
    सब ऐसा ही कुछ मिल जाएगा उसी में.......!!
    शब्दों में जादू है.....
    और वो भी जब दिल से निकले हों सारे के सारे...
    तो सीधे दिल तक पहुंचते हैं....!
    अभी तो ढेर सारे दिलों की आवाज़ आप तक पहुंचानी बाकी है.....
    होली मुबारक....!!

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    1. पूनम जी आपकी बात पे एक गीत की पंक्ति याद आ गई

      तुम्हीं न जब समझीं मेरे गीतों कि भाषा
      दुनिया सौ सौ अर्थ लगाये क्या होता है ....

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  5. बहुत खूबसूरत भाव आनंद जी.. वाह!

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    1. दीपिका जी जो भाव मन को छू जाएँ वही सुंदर !..आभार आपका !!

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  6. मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
    क़ैद नही रख़ पायेगा
    बाहर आने के लिए मैंने ....
    अन्दर ही अन्दर
    सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है ..bahut hi sattik line...

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  7. कुछ अलग ही दिशा में ले जाती भावभरी सुन्दर रचना... वाह!
    आदरणीय आनंद भाई जी... सादर बधाई..

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    1. मिश्रा जी आपके ही साथ हूँ !..ध्यान रखना :)

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  8. रूह से रूह मिलने चलेगी तो ऐसी खूबसूरत रचनाएँ लिखी जायेंगी ही !
    भावपूर्ण !

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  9. मारो ना मुझको तुम अपने प्यार की बातों से
    तुम्हारी ही जुदाई मैं में वैसे ही मरा हुआ हूँ |

    वो अपनी ही मस्ती में जीती हैं घमंडी
    मरे या जिए कोई उसकी बला से |......अनु

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    उत्तर
    1. उसे घमंडी तो ना कहो अंजू जी ...नहीं तो मैं आपको थैंक्स भी नहीं बोलूँगा !

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  10. मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
    क़ैद नही रख़ पायेगा
    बाहर आने के लिए मैंने ....
    अन्दर ही अन्दर
    सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
    गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  11. मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
    क़ैद नही रख़ पायेगा
    बाहर आने के लिए मैंने ....
    अन्दर ही अन्दर
    सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है

    loved it.

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