गुरुवार, 2 जून 2011

पता ही नहीं चला.... !


कब उनसे हुई बात, पता ही नहीं चला 
कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !

यूँ मयकशी से मेरा, कोई वास्ता न था 
कब हो गयी शुरुआत, पता ही नहीं चला !

उस एक मुलाकात ने क्या क्या बदल दिया 
'वो' बन गये हयात , पता ही नहीं चला ! 

दो चार घड़ी बाहें, दो चार घड़ी सपने 
कब  बीत गयी रात, पता ही नहीं चला !

मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली 
कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !

हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे 
कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !

'आनंद' को मिलना था, इक रोज़ बहारों से 
कब बन गए हालात,  पता ही नहीं चला  !

आनंद द्विवेदी ०१/०६/२०११


20 टिप्‍पणियां:

  1. मीठी सी चुभन वाली , हल्की सी कसक वाली ,
    कब हो गई बरसात , पता ही नहीं चला |
    ..................प्यारा शेर
    ...................बहुत रूमानी ग़ज़ल है द्विवेदी जी !

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  2. बहुत बहुत खूब....दिल से लिखी ग़ज़ल

    आपकी ग़ज़ल का एक एक शब्द दिल के करीब सा लगता है
    वो कब अपना सा बनके उभरता है ,पता ही नहीं चलता
    लगती है दिल कि ये आवाज़ पर कब से हुई
    ये पता ही नहीं चलता है

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  3. हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे
    कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !bahut hi saral shabdon main likhi hui saarthak ,sunder najm badhaai.

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  4. वाकई कब प्यार हो जाता है पता नहीं चलता... सुन्दर ग़ज़ल...

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  5. हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे
    कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !
    सही समय पर समझे आप , बस ताहि कहूँगा खुबसूरत गज़ल मुबारक हो

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  6. रूमानियत लिए प्रेम पगे भाव...... सुंदर रचना

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  7. 'आनंद' को मिलना था, इक रोज़ बहारों से
    कब बन गए हालात, पता ही नहीं चला hum bhi aanand se mil liye

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  8. सच बंधुवर इस ग़ज़ल को पढ़ते-पढ़ते ...
    मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली
    कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !

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  9. खूबसूरत गज़ल ...अक्सर पता नहीं चलता ..

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  10. दो चार घड़ी बाहें, दो चार घड़ी सपने
    कब बीत गयी रात, पता ही नहीं चला ! bhut bhut pyari gazal.. super...

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  11. kab ashq beh nikle pata hi nahi chala

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  12. हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे
    कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !

    बहुत खूब ।

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  13. "मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली
    कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !"


    आनंद...
    आपके एक-एक शब्द दिल में उतर जाते हैं...
    अब ये न पूछियेगा कि कौन से दिल में ??
    अरे !अभी तो आपने उसी का ज़िक्र किया था...
    थोड़ी देर पहले ही...
    यकीं न हो तो अपने ही पन्ने पलट कर देख लें...!

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  14. बहुत खूबसूरत गजल ..बहारो से मिलन होता रहे ..और और खुशियों से लबरेज गज़ल पढ़ने को मिलती रहे...सादर

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  15. आनंद जी ,

    यूँ मयकशी से मेरा, कोई वास्ता न था
    कब हो गयी शुरुआत, पता ही नहीं चला !

    हर शे'र बहुत उम्दा...दिल से लिखा दिल तक पहुंचा... और ये शे'र ..जैसे खुद से जुड़ा पाया.. सच में इस मयकशी का तो पता ही नहीं चलता

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  16. कब उनसे हुई बात, पता ही नहीं चला
    कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !
    बहुत ही सुन्दर .....

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  17. कब उनसे हुई बात, पता ही नहीं चला
    कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !

    बहुत बढ़िया,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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