बुधवार, 25 मई 2011

छू लो , पगलाई उमंग को !



आने दो , हर सहज रंग को !
छू लो ,  पगलाई उमंग को  !

शाम नशीली रात चम्पई 
दिवस सुहाने सुबह सुरमई 
पिया मिलन की आस जगी है
फिर अधरों पर प्यास जगी है
मूक शब्द क्या कह पाएंगे 
महा मिलन के मुखर ढंग को 
छू लो ,  पगलाई उमंग को  !

तन में वृन्दावन आने दो 
मन को मधुवन हो जाने दो 
फिर से मनिहारी मोहन को 
बरसाने तक आ जाने दो 
तन वीणा के तार बन गया 
बजने दो अविरल मृदंग  को 
छू लो, पगलाई उमंग को  !

मैं पूजा की थाल सजाये 
कब से बैठा आस लगाये 
सदियों बीत गए हों जैसे 
कान्हा को नवनीत चुराए 
सुन लो फिर वंसी का जादू
खिल जाने दो अंग-अंग को 
आने दो हर सहज रंग को !
छू लो  पगलाई उमंग को  !!

  आनंद द्विवेदी १५-०५-२०११

22 टिप्‍पणियां:

  1. शाम नशीली रात चम्पई
    दिवस सुहाने सुबह सुरमई
    पिया मिलन की आस जगी है
    फिर अधरों पर प्यास जगी है
    मूक शब्द क्या कह पाएंगे
    महा मिलन के मुखर ढंग को
    छू लो , पगलाई उमंग को !बहुत सुन्दर…अभिव्यक्ति……

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  2. uff....ek baat kahun bhaiya..kabhi kabhi tum me radha dikhne lagti hai...:)....sach me tum ajube ho................ajab rang hai tera....kabhi man karta hai khub khinchu...kabhi lagta hai ...nahi tum kuchh ho...jo sabko nahi mil sakta......sach me tera saath ajooba hai dost jaise bhaiya...tu ajuba hai ...tere har bol pyare hain............::)

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  3. मूक शब्द क्या कह पाएंगे
    महा मिलन के मुखर ढंग को
    मौन भी मुखर होता है कभी कभी , सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  4. मैं पूजा की थाल सजाये
    कब से बैठा आस लगाये
    सदियों बीत गए हों जैसे
    कान्हा को नवनीत चुराए

    sunder abhivyakti ..!!

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  5. अहा कितना सुभग होगा वह दृश्य जब कान्हा फिर माखन चुराए , रसखान के सपने ही साकार हो लें

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  6. आने दो , हर सहज रंग को !
    छू लो , पगलाई उमंग को !

    बहुत खूब ...शुभकामनायें !!

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  7. मिलन का वर्णन मूक शब्द कर ही नहीं सकते....सच!!!सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु बधाई

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  8. आने दो , हर सहज रंग को !
    छू लो , पगलाई उमंग को !

    वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  9. मंत्रमुग्ध कर दिया आपकी रचना ने........वो बंसी फिर बज उठी ऐसा लगा !!

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  10. 'तन में वृन्दावन आने दो

    मन को मधुवन बन जाने दो

    फिर से मनिहारी मोहन को

    बरसाने तक आ जाने दो '

    ...................वाह ! कितने पवित्र प्रेम के समर्पित भावों को शब्दांकित किया है

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  11. मैं पूजा की थाल सजाये
    कब से बैठा आस लगाये
    सदियों बीत गए हों जैसे
    कान्हा को नवनीत चुराए

    बहुत ही अच्‍छा लिखा है बधाई ।

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  12. आनंद...

    आपकी रचनाओं का अलग ही 'आनंद' है...


    "तन में वृन्दावन आने दो
    मन को मधुवन हो जाने दो
    फिर से मनिहारी मोहन को
    बरसाने तक आ जाने दो
    मैं पूजा की थाल सजाये
    कब से "बैठी" आस लगाये
    सदियों बीत गए हों जैसे
    कान्हा को नवनीत चुराए"

    क्षमा चाहूंगी..
    आपकी जगह खुद को लिख"बैठी"...
    शायद औरों को भी ऐसा ही लगा होगा
    लेकिन वो लिखने की धृष्टता न कर पाए होंगे !!

    ***punam***
    bas yun...hi..

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  13. तन में वृन्दावन आने दो
    मन को मधुवन हो जाने दो
    फिर से मनिहारी मोहन को
    बरसाने तक आ जाने दो
    तन वीणा के तार बन गया
    बजने दो अविरल मृदंग को
    छू लो, पगलाई उमंग को !

    मन पूरा मोहन मय हो गया ..सुन्दर रचना

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  14. आहा ! इस ख़ूबसूरत नवगीत को अब पढ़ने का सौभाग्य मिला …

    आनंद ही आनंद है !

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  15. प्रेममयी ....मनमोहिनी रचना .

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  16. कौन से तोडे की व्याख्या करूँ और कौन सा छोडूँ ……………निशब्द कर दिया…………आनन्दानुभूति मे हूँ।

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  17. सदियों बीत गए हों जैसे
    कान्हा को नवनीत चुराए
    आहा!
    भक्त हृदय ही ऐसी भावविभोर करने वाली बात लिख सकता है...!

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  18. तन में वृन्दावन आने दो
    मन को मधुवन हो जाने दो
    ******************
    तन वीणा के तार बन गया
    बजने दो अविरल मृदंग को
    ********************
    सदियों बीत गए हों जैसे
    कान्हा को नवनीत चुराए
    सुन लो फिर वंसी का जादू
    खिल जाने दो अंग-अंग को...

    Passion of senses coated with spirituality !

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