कोंछ में जिंदगी के दिन भरकर
धरती ने लगा लिया
इसी दरमियान
सूरज का पूरा एक चक्कर,
जहाँ जहाँ तनिक छाया मिलती
वो दौड़ लगा देती
और जैसे सुस्ताने लगती, पाकर तपती धूप
कई बार मृत्यु अच्छी लगी जिंदगी से
तो कई बार लड़ी जाने वाली जंग ज्यादा भली लगी मृत्यु से
तुम्हारे काजल की स्याही को छाया बना हम
जी गए लंबे लंबे दुःख
दुखों के सफर में
अकेला न होना
सफर खत्म होते होते आखिर हो ही जाता है
सुखों का सफर !
आओ साथ मनाएँ
अपने सुखों और दुखों की वर्षगाँठें
कि
ये तुम्हारी ही मुहब्बत थी
जिसकी बदौलत मैं
सलामत बच सका
धरती के इस सालाना जलसे में !
© आनंद
सुन्दर रचना
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