सोमवार, 24 अगस्त 2015

चींटी और पहाड़

मैं आज भी वही हूँ
तुम्हें अपना भगवान मानता हुआ
सहज स्वतंत्र, बंधन हीन, अपने मन का, बेपरवाह
कौतुकी, मायामय, सबकुछ खेल समझने वाला
अलभ्य अगम्य किन्तु प्रिय,

तुम आज भी वही हो
पाषाण !

- आनंद




6 टिप्‍पणियां:

  1. . बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  2. वह कहता है..पाषाण कभी स्वतंत्र हो सकता है भला..उसका तो मन ही नहीं होता, वह तो अलभ्य नहीं है हजारों मिलते हैं..जरा ध्यान से देखो..यहाँ पाषाण कौन है..

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    1. दीदी यहाँ नज़र उन तक गयी ही नहीं ..ये कोई बिचौलिए की बात है :)

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  3. Bahut achchhi kavita hai dil ko chhu liya ....apko bahut bahut dhanyawad aisi kavita likhne ke liye .asha hai aur bhi kavitaye post karte rahenge.visit matrimony

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