शनिवार, 21 जून 2014

इतना तो जाना है हमने ...

इतना तो जाना है हमने सबकी कथा-कहानी से
सबके जीवन में आते हैं कुछ पल राजा-रानी से

जुदा नहीं कर पाती जिनको दुनिया भर की दुश्वारी
अहम जुदा कर देता उनको चुटकी में आसानी से

धरती-अम्बर जैसी दूरी हो पर प्रेम न कम होता
कम होता है प्रेम हमेशा बंधन से मनमानी से

उम्मीदों से सींचा पौधा नाउम्मीदी सह न सका
ऐसे रिश्ते बन जाते हैं अक्सर पावक-पानी से

या तो अपने में ही डूबो या फिर उसके हो जाओ
थोड़ा थोड़ा सबमें रहना, होता है बेइमानी  से

मीठा-मीठा गप्प यहाँ है कड़वा-कड़वा थू थू है
परमारथ कह स्वारथ बेचें, सोच-कर्म से वानी से

रहने दो 'आनंद' अकेला, चलने दो तनहा इसको
इसकी आँखें गीली हैं तो,  खुद इसकी नादानी से

- आनंद



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