मंगलवार, 12 जून 2012

उसे रब न कहूँ तो भी...






गर अब पुकारना हो, तो तुझको क्या कहूँ मैं 
क्या अब भी दोस्त बोलूं या फिर खुदा कहूँ मैं 

कुछ तेरी गली वाले  कुछ  मेरे शहर वाले 
दोनों ही चाहते हैं,  तुझे  बेवफा  कहूँ  मैं

कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं 

इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं

कभी जिस्म के सरारे कभी रूह की मुहब्बत
तुझे सिर्फ़ ख्याल समझूं या फलसफ़ा कहूँ मैं

अब भी तो तेरी खुशबू साँसों में महकती है
कभी गुल तुझे कहूं मैं कभी गुलशितां कहूं मैं

जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं

उस दौर सा भरोसा 'आनंद' पर न करना
वो होश में नहीं  है उसे क्या बुरा कहूँ मैं
 
- आनंद   
१२ जून २०१२ !

19 टिप्‍पणियां:

  1. अपने किए पर वो तो बहुत शर्मसार था
    इंसानियत का बंदा मगर जार जार था ||...अनु

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  2. आंधी आये तूफ़ान उठे
    साथ यार का छूटे न
    मंजिल तक साथ चले
    साथी वो कदम छूटे न...

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  3. वाह! गहन भावाव्यक्ति। चलो जी, 99 का चक्कर खत्म किया। आपके सौंवे फ़ालोवर हम हुए।

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  4. वाह....

    कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
    इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं
    बेहतरीन गज़ल...सुन्दर शेर.....

    अनु

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  5. कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
    इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं

    कभी जिस्म के सरारे कभी रूह की मुहब्बत
    तुझे सिर्फ़ ख्याल समझूं या फलसफ़ा कहूँ मैं

    बहुत खूबसूरत गजल ....

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  6. वाह! बहुत ही खूबसूरत... सारे शेर उम्दा

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  7. जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
    उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं
    वाह ...बहुत खूब लिख्‍खा है ...

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  8. बहुत खूब||
    बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति है...

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  9. अब भी तो तेरी खुशबू साँसों में महकती है
    कभी गुल तुझे कहूं मैं कभी गुलशितां कहूं मैं

    वाह ...बहुत खूब

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  10. कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
    इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं ..

    वाह क्या बात है ... आप जो भी कहें इसे ... पर ये मुमकिन नहीं ...
    लाजवाब गज़ल है और कमाल के शेर ..

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  11. जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
    उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं

    ....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति....

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  12. जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
    उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं

    एक एक अश आर कबीले दाद ,अलग अंदाज़ ,बे -मिसाल .

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  13. कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
    इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं.... बहुत खूब...
    खूबसूरत गजल....
    सादर बधाइयाँ

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  14. आप सभी सुधी पाठकों का हृदय से आभार !!

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  15. कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं
    इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं

    कभी जिस्म के सरारे कभी रूह की मुहब्बत
    तुझे सिर्फ़ ख्याल समझूं या फलसफ़ा कहूँ मैं

    Gehan dard hai in shabdo mai Anandji. Behatreen rachna.

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  16. आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार !

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