मंगलवार, 5 जुलाई 2011

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो !



खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये |

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये  |

जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये  |

वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये |

मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये !

मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |

उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने  आये   |

यारों 'आनंद' से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये  ||

   -आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११ 

12 टिप्‍पणियां:

  1. मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
    क्या पता कब वो बुलाने आये!


    Bahut khub Anand sa. ......

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  2. गज़ब की प्रस्तुति…………हर शेर शानदार।

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  3. उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
    मेरे हिस्से में जमाने आये
    वाह ...बहुत खूब, हर शेर लाजवाब लिखा है ।

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  4. मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
    क्या पता कब वो बुलाने आये |

    उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
    मेरे हिस्से में जमाने आये

    बहुत खूबसूरत गज़ल ...

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  5. वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
    गैर फिर उसको मनाने आये |
    हर कोई मौक़े की ताड़ में रहता है। कब लाभ मिल जाए!
    बहुत अच्छी ग़ज़ल।

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  6. बंधुवर आनन्द जी
    अत्र कुशलम् तत्रास्तु !

    अच्छी ग़ज़ल है …

    उसके हिस्से में जन्नतें आयीं
    मेरे हिस्से में ज़माने आये


    बहुत ख़ूबसूरत शे'र है … ज़माने को सीधे नर्क नहीं बताया … :)

    मंगलकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
    याद वो किस्से पुराने आये |

    मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
    क्या पता कब वो बुलाने आये |

    इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने सुंदर भावों का एक गुलदस्ता सामने रखा एक ही ग़ज़ल में विविध भावों का सम्प्रेषण आपकी रचना कौशलता का परिचायक है .....आपका आभार

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  8. मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
    क्या पता कब वो बुलाने आये |

    शानदार....

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  9. "जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
    याद वो किस्से पुराने आये |"

    बस खूबसूरत...!!

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