मंगलवार, 19 सितंबर 2017

नशेड़ी आँखें


इन दिनों
नशेड़ी सपनों का
अड्डा हो गयी हैं
चश्मे के पीछे डरी हुई दुबकी रहने वाली मेरी आँखें,
उम्र
समाज
धर्म और कर्तव्य जैसे
कई नशामुक्ति केंद्रों का चक्कर काटने के बाद
अंततः मैंने रख दिया है इन्हें
तुम्हारी राहों पर
तुम्हारी हर आहट पर झूमने के लिए स्वतंत्र ।

© आनंद

1 टिप्पणी: