गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

उफ्फ् फिर सपने ...



सुबह से.. 
एक सादा पन्ना 
नाच रहा है 
आँखों के सामने
रात में
इसी पर मैंने 
रंग बिरंगी स्याही से
सब कुछ तो लिख दिया था ...

मैंने लिखा था 
तुम्हारी मुस्कान 
तुम्हारी शराफत 
तुम्हारा प्यार 
तुम्हारी लापरवाही 
तुम्हारी इबादत 
तुमको 

मैंने लिखा था 
अपनी आरजू 
अपनी गिड़गिड़ाहटें  
अपनी बेबसी ... 
अपना जुजून 
वो भी सब 
जो आज तक मैंने
तुमको नहीं बताया था 
खुद से भी ..
चुराए हुए था जो राज ...

पर सुबह...
देखा तो... 
पन्ना तो सादा ही था ..

निगोड़े सपने 
रात में भी  तंग करते हैं 
और दिन में भी !

-आनंद द्विवेदी  
अप्रैल १४, २०११ 

7 टिप्‍पणियां:

  1. Sapne tang karte hain....phirbhee ham unhen bulate rahte hain....unhen sanjoye rakhte hain!

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  2. काश इसी तरह हम ...अपने दिल में लिखे ...गलत चित्रों को मिटा देते

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  3. सपने ही सही ... अनकहे रंगों से पन्ने को सजा तो दिया था , कुछ पल को ही सही हकीकत मान लिया था ....

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  4. पन्ना भले ही सादा रहा हो पर दिल पर तो लिखी गयी न बात ...भले ही सपने में ..सुन्दर रचना

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  5. निगोड़े सपने
    रात में भी तंग करते हैं
    और दिन में भी !

    बहुत सुन्दर...मर्मस्पर्शी ....

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  6. वाह ...बहुत खूब बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  7. वाह द्विवेदी जी !

    अंतस के भावों को कितनी सरल और सहज अभिव्यक्ति दी है !

    अति सुन्दर

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