बुधवार, 14 जून 2017

मिलन के छंदमुक्त छंद

मिलन के छंदमुक्त छंद

तुम आ गए हो, नूर आ गया है...

नूर का तो नहीं पता पर तुम एकदम सही वक्त पर आए हो
उम्मीद की लौ बस अभी अभी बुझी भर थी कि तुमने आकर कह दिया 'धीरज नहीं है तुमको'
इस बात पर झगड़ा हो सकता है कि तुमने मेरे धीरज का पैमाना इतना बड़ा और बढ़ा कर क्यों रखा है
पर इस बात को तो तुम भी मानती हो कि मेरे जीवन में ऋतुएँ तुम्हारे आने और जाने से ही बदलती हैं,
जब तुमने कहा कि 'मुझे लगा था कि तुम अब बड़े हो गए हो पर नहीं तुम एकदम बच्चे हो'
उसी समय मैंने कायनात को शुक्रिया कहा
मुझे इस तरह से देखने के लिए,

पता है कल तुमने मुझे अनगिनत बार 'पागल' कहा और मैं उतनी ही बार इतराया खुद पर,
मुझे इस तरह की खुशी से नवाज़ने के लिए शुक्रिया ,
शुक्रिया इस चादर को अपनी पसंद के हर रंग से रंगने के लिए,
मुझे न ये खुशी क़ैद करनी है, न ये पल और न ही ये ख़ुश्बू,
सब जिस कायनात का हिस्सा हैं उसी को अर्पित,

कोई एक पल भी मेरे साथ रह लेता है न... जोकि असल में वो तुम्हारे साथ ही रहता है क्योंकि मेरा मुझमें है ही क्या बाहर भीतर हर जगह तो तुम ही मिलती हो उसे...
वो फिर बड़ी दूर तक महक़ता हुआ जाता है प्रेम की खुशबू से,

सुनो!
फिर देखो एक बार ठीक से
पागल कौन है
मैं या तुम ... ।

- आनंद