बुधवार, 14 मार्च 2012

मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ..




ना ही कोई  दरख़्त  हूँ  न  सायबान हूँ
बस्ती से जरा दूर का तनहा  मकान हूँ

चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

कैसे कहूं कि मेरा तवक्को करो जनाब
मैं खुद किसी गवाह का पलटा बयान हूँ

आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
मुंह में  जुबान भी है,  मगर बेजुबान हूँ

बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ

इक बार आके देख तो 'आनंद' का हुनर
बे-पंख  परिंदों का नया  आसमान हूँ  !!

-आनंद द्विवेदी
८ मार्च २०१२

32 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
    मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

    तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
    मुंह में जुबान भी है, मगर बेजुबान हूँ
    bahut sunder likha hai Anand bhai .

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  2. वाह वाह...
    बहुत बढ़िया गज़ल आनंद जी...

    समझ नहीं आ रहा किसको quote करूँ....
    सभी लाजवाब...
    बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
    या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ

    ये तो बेमिसाल...
    सादर.

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    1. आपका शुक्रिया मोहतरमा ! मैं अनाड़ी किसान तो नहीं था मगर कमबख्त वो ही खुदा निकला !

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  3. "ये उसकी साजिश है कोई, या उसका दीवानापन
    मुझसे ही कहता है, तुमसा आशिक़ पाना मुश्किल है!"

    एक ये आनन्द है जिसके लिए मैंने कहीं कहा है .......

    "दीवाने,आशिक न जाने कितने होंगे दुनिया में,
    लेकिन सच है बात कि 'आनंद' सा होंना मुश्किल है !!"

    लेकिन तब आपका ये हुनर नहीं पता था....

    "कैसे कहूं कि मेरा तवक्को करो जनाब
    मैं खुद किसी गवाह का पलटा बयान हूँ"

    बहरहाल.....
    आपकी लेखनी को सलाम.....!!
    कैसे लिख लेते हैं आप.....??
    हर शेर लाजवाब....
    हर शेर बेमिसाल....
    हर शेर अपने भाव को सार्थक करता हुआ.....
    क्या बात.....!
    क्या बात.....!!
    क्या बात.....!!!

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  4. वाह! पूरी ग़ज़ल ही quote करने लायक है। बहुत खूब..

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  5. आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
    मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

    तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
    मुंह में जुबान भी है, मगर बेजुबान हूँ
    वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ... लाजवाब

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    1. सदा जी आपके लेखन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है आभार आपका !

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  6. सब कुछ दिल ने कर दिया बयाँ
    दिखा के चोट अपनी के ताज़ा निशाँ ||

    आनद से रहें !
    शुभकामनाएँ!

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    1. सलूजा साहब आपकी टिप्पड़ी को मैं आशीर्वाद की तरह ले रहा हूँ !

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  7. बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
    या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ
    अरे! खुदा पर इतना बड़ा इल्जाम...वह भी उसके भक्त द्वारा ? वैसे गजल बहुत अच्छी है.

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    1. दीदी ये गज़ल माधव के लिए नहीं है ...दुनिया के लिए है!

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  8. चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
    मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

    आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
    मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति !

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  9. तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
    मुंह में जुबान भी है, मगर बेजुबान हूँ

    बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
    या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ

    .bahut sundar umda prastuti..

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  10. बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
    या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ .... अति सुन्दर!

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  11. बहुत ही प्यारी रचना है,फेस बुक पर शेयर कर रही हूँ

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  12. चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
    मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

    ....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल जो दिल को छू जाती है....

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  13. चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
    मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

    लाजवाब

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  14. पहाड़ों से झरनों को गिरते देखा हैं हमने
    ए,सनम पर तेरा पत्थर दिल ना पिघलते देखा |......अनु

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  15. खुदा खैर करे ... अनादी किसान के खेत में ऐसी बेहतरीन और उम्दा गज़लें बोई उगाई जा रही है ... बहुत खूब आनंद जी ...

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