रविवार, 25 जून 2017

थोड़ी दूर अकेले चलने की सोचें

थोड़ी दूर अकेले चलने की सोचें
आख़िर क्यों साँचे में ढलने की सोचें

सब अपनी अपनी राहों से जाएँगे
हम क्यों तेरी राह बदलने की सोचें

जितने गहरे जाना था हम डूब चुके
अब कोई तरकीब निकलने की सोचें

तेरी संगदिली भी एक मसळआ है
लेकिन हम क्यों संग पिघलने की सोचें

क्या जाने कब ज़ख़्मी हो ले मूरख दिल
इन ज़ख़्मों के साथ संभलने की सोचें

आशिक़ तो बेचारा खुद ही मिट लेगा
हम क्यों कोई रस्म बदलने की सोचें

कहते हैं 'आनंद' मिलेगा जलने में
ऐसा हो तो हम भी जलने की सोचें

– आनंद

बुधवार, 14 जून 2017

मिलन के छंदमुक्त छंद

मिलन के छंदमुक्त छंद

तुम आ गए हो, नूर आ गया है...

नूर का तो नहीं पता पर तुम एकदम सही वक्त पर आए हो
उम्मीद की लौ बस अभी अभी बुझी भर थी कि तुमने आकर कह दिया 'धीरज नहीं है तुमको'
इस बात पर झगड़ा हो सकता है कि तुमने मेरे धीरज का पैमाना इतना बड़ा और बढ़ा कर क्यों रखा है
पर इस बात को तो तुम भी मानती हो कि मेरे जीवन में ऋतुएँ तुम्हारे आने और जाने से ही बदलती हैं,
जब तुमने कहा कि 'मुझे लगा था कि तुम अब बड़े हो गए हो पर नहीं तुम एकदम बच्चे हो'
उसी समय मैंने कायनात को शुक्रिया कहा
मुझे इस तरह से देखने के लिए,

पता है कल तुमने मुझे अनगिनत बार 'पागल' कहा और मैं उतनी ही बार इतराया खुद पर,
मुझे इस तरह की खुशी से नवाज़ने के लिए शुक्रिया ,
शुक्रिया इस चादर को अपनी पसंद के हर रंग से रंगने के लिए,
मुझे न ये खुशी क़ैद करनी है, न ये पल और न ही ये ख़ुश्बू,
सब जिस कायनात का हिस्सा हैं उसी को अर्पित,

कोई एक पल भी मेरे साथ रह लेता है न... जोकि असल में वो तुम्हारे साथ ही रहता है क्योंकि मेरा मुझमें है ही क्या बाहर भीतर हर जगह तो तुम ही मिलती हो उसे...
वो फिर बड़ी दूर तक महक़ता हुआ जाता है प्रेम की खुशबू से,

सुनो!
फिर देखो एक बार ठीक से
पागल कौन है
मैं या तुम ... ।

- आनंद

मंगलवार, 13 जून 2017

शब्दों से भय ...

मैं कुछ लिखने के लिए कलम उठाता हूँ
फिर रख देता हूँ
ये सोचकर कि
शब्द मौन की हत्या है
मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ
डरता हूँ प्रेम के अनुवाद से
दर्द का एक ही मतलब है दर्द
उसकी व्याख्या करना छल है प्रेम से,

प्रेम का जिक्र करना
उस लाक्षागृह में आग लगा देना है
जिसमें धोखे से ठहराए गए हैं कुछ सपने
मैं आग से भयभीत नहीं हूँ
डरता हूँ सपनों की मासूमियत से
मेरा मौन लाक्षागृह की सुरंग है

शायद बच निकलें कुछ सपने
शब्दों की दहकती आग से

'भरोसा' सबसे बड़ा धोखेबाज शब्द है ।

 - आंनद