रविवार, 13 नवंबर 2011

मेरा पथ सुंदर करने को ..



मेरा पथ सुंदर करने को
कितने कष्ट उठाये तुमने
मेरे मन का तम हरने को
कितने दीप जलाये तुमने

तुमसा प्रेम निभाने वाला
इस धरती पर कौन मिलेगा
तुम सा सुंदर पुष्प दूसरा
अब उपवन में कहाँ खिलेगा
जब खुशबू का ज्ञान नहीं था
तब भी पल महकाए तुमने ,
मेरे मन का तम हरने को, कितने दीप जलाये तुमने |

'मैं हूँ' 'मेरा है' जब तक था
तब तक तुमको समझ न पाया
फिर भी कदम कदम पर हमदम 
तुमने सच  का बोध कराया ,
गीता के श्लोक हो गए
जो जो गीत सुनाये तुमने |
मेरे मन का तम हरने को , कितने दीप जलाये तुमने |

तेरी राहों में ये जीवन
अपने आप समर्पित प्रियतम
अंतर में अद्वैत प्रकाशित
अब तो न मैं हूँ और न तुम
प्रेम शांति और अहोभाव के
मुझमे बीज जगाये  तुमने |
मेरा पथ सुंदर करने को, कितने कष्ट उठाये तुमने |
मेरे मन का तम हरने को, कितने दीप जलाये तुमने ||

 - आनंद द्विवेदी - १३/११/२०११.