मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

शोर क्यों हम बेवफ़ाई का मचाएं दोस्तों

शोर क्यों हम बेवफ़ाई का मचाएं दोस्तों
क्यों नहीं हम भी नया इक गुल खिलाएं दोस्तों

आजकल तो ख्वाब भी बिकने लगे बाज़ार में 
आइये खेती करें सपने उगायें दोस्तों

क्या हुआ है वो कहीं बरसात में भीगे हैं क्या
छू रही हैं जिस्म को महकी हवाएँ दोस्तों

इश्क़ भी करना निभाना भी वफ़ा भी हाय रे
एक  उस मासूम पर कितनी बलाएँ दोस्तों

अब खुदा से भी बहुत उम्मीद करना व्यर्थ है 
काम न आईं अगर 'उसकी' दुआएँ दोस्तों 

सारे क़ातिल फ़ातिहा पढ़ने इकठ्ठा हो गए 
फ़ैसला दुश्वार है, किसको बुलायें दोस्तों

मुझको कितनी दिक्कतों में डालकर जाती हैं ये
उनकी यादों से कहो अक्सर न आयें दोस्तों

बेरुखी उनकी, हमारी बेबसी बे-इंतहाँ
हैं, मेरे 'आनंद' होने की सजायें दोस्तों

- आनंद